12 Jun 2018

अब हमारी प्यास रीती

ओ लबालब नेह से भरते, उफनते, टूटते तट!
अब हमारी प्यास रीती।

तब तुम्हारे ही लिए थी, ओस तिनके से चुराई
बूंद बरखा की सहेजी, याद से सांसे तराईं
अब नयन के गांव में कोई नहीं रहता तुम्हारा
आंख के हर एक आंसू की हुई दु:ख से सगाई
अनसुनी कुछ याचनाओं पर हृदय को कोसना मत,
जो गई, वो बात बीती।

भाग्य है सबका, तुम्हारा दोष कुछ भी तो नहीं है
जो हमारा था, कहीं है, जो तुम्हारा था, कहीं है
आज स्वीकारो यही अंतिम निवेदन वेदना का
स्वप्न जो मिल के जना था, कल उसी की तेरही है
हो गए हमसे पराजित आज जीवन और तर्पण,
पर विरह की रात जीती।

आज हम में और तुम में प्रेम दुहराया गया है
रो दिए जब-जब बिछड़कर, तब हमें गाया गया है
आज फिर निश्चित रचेगा प्रेम में इतिहास कोई
देह से सम्बन्ध मन का आज ठुकराया गया है
प्रेम है असहाय तब से, जब नियति ने भाग्यरेखा,
पत्थरों के हाथ दी थी।

© मनीषा शुक्ला