24 May 2020

हर किसी की आँख में है एक टुकड़ा घर



हर किसी की आँख में है एक टुकड़ा घर

पेट में ईंधन नहीं पर पैर चलते हैं
मंज़िलों की चाह में रस्ते मचलते हैं
दुधमुँहे को ख़ून देकर पालती ममता
धूप में तपते बदन को सालती ममता
रोटियों में देखती तस्वीर सपनों की
हाय! थकने ही न देती फ़िक़्र अपनों की
जीभ से बिखरे निवाले को उठाते जब
सीज जाता है सड़क का भी कलेजा तब
इस सफ़र को देख रोया मील का पत्थर

ख़ुद मुसाफ़िर हैं, बनाते दूसरों के घर
है थकन इनआम इनका, भूख है ज़ेवर
हर महल की नींव में, दीवार, ज़ीने में
हैं अजब ये लोग, हँसते हैं पसीने में
ज़िन्दगी है ख़्वाब, साँसे ही हकीक़त हैं
ये रहें ज़िंदा, यही इनकी ज़रूरत है
योजनाओं में हमेशा आख़िरी दिखता
शून्य, जिस पर देश का सारा गणित टिकता
गिनतियों में छूट जाता है यही अक्सर

पटरियों पर लाश 'शायद' आदमी की है
मौत से बदतर कहानी ज़िन्दगी की है
देह पर कुछ बोटियाँ जिनकी सलामत हैं
वो चुनावी वोट हैं, इतनी ग़नीमत है
लोग ज़िंदा थे, तरक़्क़ी बस यही तो थी
आदमी की ज़ात अब तक 'आदमी' तो थी
हर तरफ़ आँसू दिलासे को तरसते हैं
दीप जलते, फूल मातम पर बरसते हैं
हो गई छाती सियासत की बहुत ऊसर

©मनीषा शुक्ला

17 May 2020

किसी की जान लेनी हो तो उसको प्यार करते हैं

हमीं राहें बनाते हैं , हमीं दुश्वार करते हैं
सज़ा भी जानते हैं पर ख़ता हर बार करते हैं
किसी से प्यार करते हैं तो उस पर जान देते हैं
किसी की जान लेनी हो तो उसको प्यार करते हैं

©मनीषा शुक्ला


5 May 2020

उम्र भर तुमको गुनगुनाएंगे



मेरे गीतों में आ बसों हमदम
उम्र भर तुमको गुनगुनाएंगे

©मनीषा शुक्ला

4 May 2020

नींदों के घर यादों का हंगामा है



सपनों का दमन आँखें कैसे थामें
नींदों के घर यादों का हंगामा है

©मनीषा शुक्ला

3 May 2020

हमको तुमसे कहना है


दिल को हमसे, हमको तुमसे कहना है
इन सपनों को उन आँखों में रहना है

©मनीषा शुक्ला

1 May 2020

चल रोप लें थोड़े सितारे

रात का मतलब अँधेरा ही न समझें पीढियां कल
जोत कर आकाश को चल रोप लें थोड़े सितारे

चाँदनी रिश्वत बिना कुछ भी नहीं करती यहाँ पर
इंच भर चढ़ती नहीं अब, हो गई है धूप अजगर
पर सुना है जुगनुओं में आज भी थोड़ी नमी है
एक विधवा साँझ को देते दिलासा, रोज़ जलकर
सीख जाएगी सियाही आँसुओं से बात करना
बस इसे काजल बनाकर बाँध आँखों के किनारे

गिर चुकी ईमान से, आँधी बनीं सारी हवाएँ
दे रही हैं मश्विरा, हम दीप से घर को बचाएँ
पेट भरना तो नहीं केवल ज़रूरत आदमी की
है ज़रूरी, धान के संग आज अँगारे उगाएँ
बदलियों के केश उलझा चाँद पूजें हम भला क्यों
आज करवाचौथ सोचे, आज यह पूनम विचारे

ये बयां है रोशनी का आँख में पलती रहेगी
आग का उबटन निशा की देह पर मलती रहेगी
एक चिन्गारी बड़ी नादान, उसने ठान ली है
जिस तरफ़ होगा अँधेरा, उस तरफ़ चलती रहेगी
वो न जागा, तो न होगी भोर, समझेगा उजाला
साथ सूरज के अगर मन डूब जाएँगे हमारे

© मनीषा शुक्ला