31 Jul 2022

गुजरिया है कितनी सुंदर

गुजरिया है कितनी सुंदर 
जगर-मगर कजरारी आँखें, बातें चटर-पटर

अंगड़ाई से तोड़ रही है जाने कितने दरपन
रोज़ बदलता रंग दुपट्टा, सूट बदलता पैटर्न
मीठी नीम सरीखा गुस्सा, गुड़ जैसी दे गाली
चंदा के कंगन पहने हैं और हवा की बाली

इसकी जुल्फों में करती हैं रातें गुज़र - बसर 
गुजरिया है कितनी सुंदर 

कुछ खोया है जिसको जाने ढूंढ रही है कबसे
बदली सी लगती है ट्यूशन से लौटी है जबसे
ख़ुद ही ख़ुद की बाहों में सिमटी जाती है ऐसे
झुककर पहली बार किरण ने ओस छुई हो जैसे

हां या ना के बीच लगाती कितने अगर -मगर
गुजरिया है कितनी सुंदर 

सतरंगी अख़बार हुआ है इक सादा सा चेहरा
सुर्खी का सारा ज़िम्मा होंठों के तिल पर ठहरा
लाइब्रेरी से कैंटीन तक बस इनका ही चर्चा
लड़कों की खातिर ये आंखें हैं बी ए का पर्चा

जितने मुंह उतनी ही बातें होती शहर -डगर 
गुजरिया है कितनी सुंदर 

लिख भेजी है जाने किसने चिट्ठी चूम रही है
अनजानी इक धुन पर लट्टू बनकर घूम रही है
उमर लगी है गिनने अब तो उंगली की  पोरों पर
जी लगता घर पर ना ही अब लगता घर के बाहर 

तटबंधों से उलझी नदिया करती कसर -मसर 
गुजरिया है कितनी सुंदर 

यौवन ने बस देह नहीं मन को आकार दिया है
नींदों ने पलकों पर सपनों का सब भार दिया है
शहद मिला अमचूर हुआ है खट्टा -मीठा लहज़ा   
एक किसी का नाम लबों पर बिखरा रेज़ा - रेज़ा
 
उड़ती फिरती है भीगी चिंगारी इधर - उधर 
गुजरिया है कितनी सुंदर 

©मनीषा शुक्ला