30 Oct 2020

बदलाव

हमीं से आएगा बदलाव;
जिन पेड़ों ने धूप चखी हो, वे ही देंगे छाँव !

जिन नदियों ने सीखा है पत्थर की देह गलाना
उनके ज़िम्मे है पर्वत पर ताज़ा फूल खिलाना
धरती की चोटी में सजती जिन मेघों की बूँदें
उनके पीछे चलती है पुरवाई आँखें मूँदें

केवल सूरज से डरते हैं अँधियारों के गाँव !

जिनके माथे पर सजता है मेहनत का अंगारा
उन आँखों में ख़ुश रहता है हरदम मोती खारा
जिनकी रेखाओं के घिसने से है माटी, सोना
उन हाथों की बाँदी किस्मत, क्या पाना, क्या खोना

नापेंगे इक रोज़ अमरता छालों वाले पाँव !

हर टुकड़े में जिसने पूरा-पूरा सच दिखलाया
पूरी दिखती है जिसमें अंधी आँखों की छाया
अच्छे और बुरे का जिसमें शेष नहीं आकर्षण
छाया जिसका धर्म उसी को मानेगा जग 'दर्पण'

ऐसे दर्पण पर ख़ाली है हर पत्थर का दाँव !

©मनीषा शुक्ला



10 Oct 2020

मीठे आँसू

रोज थके सपनें उनमें आकर सो जाते हैं
रातें, बादल, चँदा सब उनमें खो जाते हैं
रोया करती हैं जो याद किसी को करके शब भर
उन आँखों के आँसू भी मीठे हो जाते हैं

©मनीषा शुक्ला