26 Apr 2019

धरती की मनुहार

कितने सारे पनघट रीते, कितनी ही नदियां हार गईं
लेकिन बादल के कानों तक, कब धरती की मनुहार गई?

© मनीषा शुक्ला

22 Apr 2019

परिचय

फिर मिले या मिल न पाए, जग! तुझे दीपित अँधेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

सूर्य से पहले जली हूँ, चाँद से पहले ढली हूँ
चूमकर पदचिन्ह अपने, नाश पथ पर मैं चली हूँ
मैं सृजन का वंश हूँ, मैं ही प्रलय की उत्तरा हूँ
सेज पर अंगार के सोई हुई मादक कली हूँ
प्राण में मेरे पलेगा मृत्यु का कोई चितेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

वेदना का मोल पाकर, पीर की टकसाल होकर
मैं सदा फूली-फली हूँ आंसुओं के बीज बोकर
एक जुगनू सा अकेला जल रहा मुझमें दिवाकर
जागते मुझमें गगन के दीप सारी रात सोकर
रोज़ मेरे नैन का काजल उगलता है सवेरा मांग!
परिचय मांग मेरा!

है ह्रदय में आग बाक़ी, मेघ नैनों में सँवरते
कंठ में पीड़ा बसी है, गीत अधरों पर उतरते
पीर का यह गाँव मैंने ही बसाया है, अभागे!
दो घड़ी सुख-चैन जिसकी छांव में आकर ठहरते
सृष्टि सारी मांगती जिस टूटते घर में बसेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

© मनीषा शुक्ला

17 Apr 2019

महावीर जयंती

प्रेम से पीर धोना कठिन है बहुत
पीर में धीर होना कठिन है बहुत
त्याग से विश्व को जीतने के लिए
फिर महावीर होना कठिन है बहुत

© मनीषा शुक्ला

11 Apr 2019

तुम्हारे प्यार की मीठी रसीदें याद हैं अब भी



तुम्हारे साथ की शॉपिंग, ख़रीदें याद हैं अब भी
बिछड़ कर साथ रहने की उम्मीदें याद हैं अब भी
कभी थामा था तुमने हाथ मेरा हाथ में लेकर
तुम्हारे प्यार की मीठी रसीदें याद हैं अब भी

© मनीषा शुक्ला