20 Mar 2020

दोषी ( निर्भया के लिए )

हम दोषी हैं!
हम लड़कियां सचमुच दोषी हैं!
हम अपनी ज़ात भूल जातीं हैं।
हम भूल जातीं हैं कि हम लड़कियां हैं
और इसीलिए हम समाज के किसी भी सवाल का जवाब ठीक-ठीक नहीं दे पातीं।
हम नहीं बता पातीं कि हम छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं ?
हमें ये भी नहीं पता कि हम मेक-अप करके सुंदर क्यों दिखना चाहती हैं?
हम समझा ही नहीं पातीं कि हम रात साढ़े-बारह बजे सड़क पर क्यों घूम रही होती हैं?
हम अगर अकेले रात को घर से निकलीं तो पूछा जाता है -अकेले क्यों गई?
हम किसी पुरुष के साथ गईं तो पूछा जाता है
-उस पुरुष से हमारा सम्बन्ध क्या था?
हम लाजवाब हो जातीं हैं ये सुनकर कि इस समाज ने अधिकार दिया है
एक पिता (एडवोकेट ए. पी.सिंह) को अपनी बेटी पर पेट्रोल डालकर उसे ज़िंदा जला देने का।
हम समझ ही नहीं पातीं हैं कि सात साल बाद
हम पर हुए दानवीय अत्याचार के बदले हमें इंसाफ़ देने के बाद,
हमारे ही चरित्र को हथियार बना कर, अंतिम प्रहार हम पर ही क्यों किया जाता है?
हम नासमझ लड़कियां, समझा ही नहीं पातीं किसी को कि
"पँख वाली तितलियों का उड़ना अपराध क्यों नहीं होता है???"

©मनीषा शुक्ला

4 Mar 2020

करोगे तब भी मुझसे प्यार?

करोगे तब भी मुझसे प्यार?
ढल जाएगा रूप, बदन पर रोएगा सिंगार!
करोगे तब भी मुझसे प्यार?

झुर्री वाला चाँद नहीं जब दरपन को भाएगा
नैनों के बदले नैनों से चश्मा टकराएगा
फिल्मी गीतों की धुन पर जब गाऊँगी चौपाई
ड्रेसिंग टेबल पर रक्खूँगी मरहम और दवाई
स्वेटर बुनने में बीतेगा मेरा हर इतवार!
करोगे तब भी मुझसे प्यार?

जब बालों से झाँकेगा थोड़ा-थोड़ा उजियारा
आँखों की झांईं से हारेगा काजल बेचारा
झीने-झीने सुर में थक कर जब कोयल गाएगी
धरकर हाथ कमर पर कोई नदिया सुस्ताएगी
एल्बम बनकर रह जाएगा सुधियों का संसार!
करोगे तब भी मुझसे प्यार?

गर तुमको, ठग लेगी मुझसे कोई उमर गुजरिया
फिर तो इश्क़-मुहब्बत, कच्चा सौदा है सांवरिया
सोच-समझ लो, फिर मत कहना, कर बैठे नादानी
सपनों की खेती में लगता है आँखों का पानी
क्या मुट्ठी में रख पाओगे, लम्हों की रफ्तार?
जताना तब ही मुझसे प्यार!

©मनीषा शुक्ला