28 Apr 2022

मिलना साधारण हो जाता


यह ठीक हुआ, हम मिल न सके, मिलना साधारण हो जाता
हर दूजी प्रेम कहानी-सा अपना भी जीवन हो जाता

बेहद साधारण होता है संयोग-मिलन, जीना-मरना
ना पीर सही, ना प्रेम किया, ऐसे जीवन का क्या करना
जितना टूटे, उतना मीठा गाता है गीत हृदय जग में
जितना हारा, उतना ज़्यादा होता है मीत अजय जग में

कैसे यह प्रेम, समर्पण के मानक से आगे बढ़ पाता
जिसको तीरथ माना है यदि वो घर का आंगन हो जात

इक-दूजे को पाकर कोई कब कहता है इक़रार हुआ
हम तुमसे दूर हुए जबसे; कुछ ज़्यादा तुमसे प्यार हुआ
इक-दूजे को पा लेते तो हम इतने ख़ास नहीं होते
इक-दूजे के संग होते तो, हम इतने पास नहीं होते

तस्वीरों का फिर क्या होता, क्या होता सूखे फूलों का
इक-दूजे की यादों के बिन कितना ख़ाली मन हो जाता


चल एक अधूरे किस्से का मनचाहा अंत लिखें दोनों
जैसे चाहा इक-दूजे को, वैसे ही रोज़ दिखें दोनों
इक-दूजे के सपनों में रहने का हमको अधिकार रहे
इक-दूजे के हों हम दोनों, हम दोनों का संसार रहे

अब आधी प्रेम कहानी में कस्तूरी बनकर महकेंगे
हम दोनों का संयोग महज़ ख़ुश्बू का बंधन हो जाता


©मनीषा शुक्ला

24 Apr 2022

जंगली फूलों

जंगली फूलों तुम्हारी ख़ुश्बुओं का मोल क्या है
तुम कि जैसे रूप के माथे लगा काजल डिठौना

जन्म; जैसे एक अनचाही दुआ स्वीकार होना
मृत्यु, जैसे क्यारियों की क़ौम पर उपकार होना
उम्र जैसे हो घड़ी की नोंक पर ठहरा हुआ पल
तुम धरा की देह पर मानो न मानो भार हो ना?

देख तुमको कनखियों से सोचता है आज उपवन
गन्ध का कैसे हवा से हो गया बेमेल गौना

व्यय हुआ तुम पर तभी तो हो गया बेरंग पानी
देख तुमको ही नहीं आई बहारों तक जवानी
हाँ! तुम्हीं को देखकर काँटे सभी इठला रहे हैं
ठूँठ, खर-पतवार तुममें ढूँढते हैं एक सानी

तोड़कर तुमको विदाई दे रही है डाल ऐसे
फेंकती हो आँधियों की राह में जैसे खिलौना

प्रेम के प्रस्ताव का अनुवाद बन पाए नहीं तुम
फिर प्रणय की सेज के भी काम कुछ आए नहीं तुम
तुम न सज पाए किसी नवयौवना के कुन्तलों में
देवताओं के हृदय को आजतक भाए नहीं तुम

तुम कसकते ही रहे हो हर किसी की आँख में यूँ
ज्यों किसी मीठे सपन की नींद को चुभता बिछौना

©मनीषा शुक्ला