31 Jan 2021

ग़लत होगा

सही, सही नहीं; ग़लत अगर ग़लत होगा

हवा के साथ चराग़ों का घर ग़लत होगा 

©मनीषा शुक्ला

27 Jan 2021

कभी वो भी तो कहे

किसी जवाब  का  कब   इंतज़ार   करता  है

वही सवाल   मुझसे   बार - बार   करता है

उसे   यक़ीन  है  मैं  उससे प्यार  करती  हूँ

कभी तो वो भी कहे-'मुझसे प्यार करता है'

©मनीषा शुक्ला


23 Jan 2021

अलग बात है

प्रेम करना अलग बात है, प्रेम  पाना  अलग  बात है
युद्ध लड़ना अलग बात है, जीत जाना अलग बात है

है गगन तो सभी का मग़र, पँख सबको कहाँ मिल सके
नींद सबको मिली है मग़र, ख़्वाब  सबके नहीं  हैं  पके

फूल खिलना अलग बात है, रंग आना अलग बात है

जीत बैठें मुक़दमा मग़र फैसला हक़ में आया नहीं
एक बंधन न टूटा कभी, एक जाए निभाया नहीं 

रो न पाना अलग बात है, मुस्कुराना अलग बात है

एक छत चाहिए जो बने, एक टुकड़ा निजी आसमाँ
एक मलबा मिला है मग़र तोड़कर ख़्वाहिशों का मकां

ईंट-पत्थर अलग बात है, आशियाना अलग बात है

आँसुओं को भला किस तरह शब्द से कोई सिंगार दे
आह से आह कैसे जुड़े, टीस को क्या अलंकार दे

पीर सहना अलग बात है, गीत गाना अलग बात है

©मनीषा शुक्ला

22 Jan 2021

रास्ते को हारकर रुकना पड़ा

आज पहली बार नीचा है गगन
आज पहली बार है झुकना पड़ा

आज से पहले कभी ऊँचाइयाँ
सिर उठाने पर नहीं थी कम पड़ी
देहरी ने की नहीं अवमानना
द्वार पर तोरण लिए हरपल खड़ी
आज तन सम्मान से दूना हुआ
इसलिए अभिमान से चुकना पड़ा

आज से पहले सदा परछाइयाँ
क़द बढ़ाती थीं क़दम को चूमकर
दिन चढ़े, सूरज ढले या रात हो
हो गई अब ज़िन्दगी इक दोपहर
ढूँढता कोई नहीं; इस खेल में
आज अपने-आप से लुकना पड़ा

आज से पहले कभी चलते हुए
बोझ लगते थे न अपने पाँव ख़ुद
आज से पहले न दीखा पेड़ वह
माँगता अपने लिए जो छाँव ख़ुद 
इस तरह भटके बटोही के चरण
रास्ते को हारकर रुकना पड़ा

मनीषा शुक्ला


20 Jan 2021

सुख का कोई योग नहीं है

हम-तुम एक धरा पर फिर भी मिलने का संयोग नहीं है
प्रेम गणित है ऐसा  जिसमें सुख का कोई योग  नहीं  है

दूरी जिससे कम हो जाए ऐसी कोई राह नहीं है
और तुम्हारे बिन मंज़िल से मिलने की भी चाह नहीं 
पत्थर का सीना पिघलाए फूलों में वो आह नहीं है 
आज मरें हम, कल मर जाएं, दुनिया को परवाह नहीं 

बादल से सावन, सागर से मोती, नदियों से गंगाजल
सारे जल-जीवन में केवल 'आँसू' का उपयोग नहीं है

साँसों का संगीत जिन्हें लगता है धड़कन की मजदूरी
मृगछौने से ज़्यादा प्यारी होती है जिनको कस्तूरी
कैलेंडर बदले जाने को हैं जिनके दिन-रात ज़रूरी
रंग महज़ लगती है जिनको दुल्हन जैसी साँझ सिंदूरी

उनको ही तो मुस्कानों का सारा क़ारोबार फलेगा 
जिनकी आँखों के पानी का पीड़ा से उद्योग नहीं है 

हमने ख़ुद अपने आँचल पर काँटों को अधिकार दिया है
हमने पीड़ा से ही केवल पीड़ा का उपचार लिया है
प्रेम-कथा में अपने हिस्से आया हर क़िरदार जिया है
हम हर दुःख के अधिकारी हैं, आख़िर हमने प्यार किया है

हम दोनों के पास नयन हैं, हम दोनों ने सपनें देखें
हम दोनों ने प्रेम किया है, जग पर कुछ अभियोग नहीं है

©मनीषा शुक्ला



6 Jan 2021

सच बोल देता है

 रहे ख़ामोश राही, क़ाफ़िला सच बोल देता है

सदा मंज़िल पे आके रास्ता सच बोल देता है 


©मनीषा शुक्ला




1 Jan 2021

नया साल


उदासी और मायूसी पुराना फ़लसफ़ा बदले
गुलों के रंग बदले तो कभी गुलशन हवा बदले
नए इस साल से कहना पुराने साल बस इतना
अगर कुछ ख़्वाब तोड़े तो हक़ीक़त भी ज़रा बदले

©मनीषा शुक्ला

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