26 Nov 2021

धरती पर आकाश सजेगा

उत्सव में उल्लास सजेगा, गीतों में मधुमास सजेगा

जिस दिन तुम लौटोगे उस दिन धरती पर आकाश सजेगा

बाँझ बनी सारी खुशियों की गोद भराई हो जाएगी
हर आँसू की, एक हँसी से आज सगाई हो जाएगी
रोज़ उदासी जिनपर झूली, उन गालों में भंवर पड़ेंगे
नैनों से उलझेगा काजल, लाल महावर पाँव भरेंगे 

एक दफ़ा चाहेंगे तुमको, सात जनम तक पाएंगे हम
एक तुम्हारा रूपक पाकर जीवन का अनुप्रास सजेगा 

तुम आओ तो छोर हवा के बाँध सकूँगी मैं आँगन से
तुम आओ तो करवा लूँगी समझौता कोई दरपन से
तुम आओ तो मुस्कानों के चौक पुरे जाएँगे द्वारे
तुम आओ तो दरवाज़े पर बाँहों के हों तोरण सारे 

एक तुम्हारी आहट भर से घर नन्दन वन हो जाएगा
तुलसी के चौरे पर कोई दीपक अन आयास सजेगा

तुम बिन कुछ तो कम है मुझमें, मुझ बिन तुम भी कैसे पूरे
मेरी साँसों  के बिन होंगे प्राण! तुम्हारे प्राण अधूरे
देह बिना जैसे अँगड़ाई, अँजुरी के बिन जैसे पानी
सुख बिन कैसा वैभव बोलो, बिन राजा के कैसी रानी

दक्ष सुता जो शिव पाने को कर बैठी हो प्राण प्रतिज्ञा
एक सती को पाकर ही तो शिव का भी कैलाश सजेगा

©मनीषा शुक्ला