31 Jan 2020

तुम्हारी जब-जब आई याद

तुम्हारी जब-जब आई याद!
मुस्कानों ने होंठ चखे, पाया आँखों का स्वाद,
तुम्हारी जब-जब आई याद!

जिन रस्तों ने हमको देखा मिलते और बिछड़ते
जिस नदिया ने गीत सुनाए आँजुर भरते-भरते
जिस पत्थर ने नाम हमारा बरसों तलक सहेजा
जिस बादल ने हम दोनों की ख़ातिर सावन भेजा
वो रस्ते, नदिया, पत्थर, वो बादल हों आबाद!
तुम्हारी फिर से आई याद!

मंदिर की देवी को रिश्वत वाले फूल चढ़ाएं
बूढ़े पीपल को थे बच्चों के सब नाम बताएं
जिस पुलिया पर बैठ किया हमने तय नक्शा घर का
सुनकर अपनी प्रेम कहानी, सीना उसका दरका
फिर भी मन के गठबंधन की रखते हैं मरजाद!
तुम्हीं को करके हर पल याद!

साथ तुम्हारे लगती दुनिया चलता-फिरता जादू
साथ तुम्हारे हमने रोएं केवल मीठे आँसू
गुँथ-गुँथ कर चोटी में थे तब लम्हें भी बतियाते
आज अकेलेपन में नैना, नैनों से घबराते
एक तुम्हारे पहले साथी! एक तुम्हारे बाद!
तुम्हारी कितनी आई याद!

©मनीषा शुक्ला