26 Mar 2019

मंदोदरी की पीर

राम, रावण मारने को अब अगर आना धरा पर
दो घड़ी मंदोदरी की पीर से आँखे मिलाना

देखना वैधव्य पाकर तेज पर क्या बीतती है
द्वंद में पुरुषार्थ के देखो त्रिया क्या जीतती है
पुण्य को क्या-क्या मिला है, पाप की सहधर्मिणी बन
पूरने को हठ समंदर के नदी ही रीतती है
सौंप देना पत्थरों को जब समंदर के हवाले
हो सके तो बूंद भर उस नीर से आँखें मिलाना

एक जीवित माँ मिलेगी लाख पूतों के शवों पर
भाग्य पर रोते मिलेंगे हर जगह बिछुए महावर
मौन की चीत्कार बनकर लोरियां गाती मिलेंगी
देखना दुर्भाग्य सूनी गोदियों के साक्ष्य बनकर
तार आए हो अहिल्या, मृत शिला में प्राण भरकर
अब ज़रा जीवित शिला के धीर से आँखे मिलाना

जय पराजय हो किसी की, फ़र्क़ क्या विध्वंस तय था
हर किसी की देह में बस काठ का शायद ह्रदय था
धर्म ने जब रक्त का टीका लगाया भाल पर, तब
थम गया रण, चूड़ियों के टूटने का वह समय था
सातिए, तोरण सजाते द्वार पर जिसके विभीषण
उस किले की चीखती प्राचीर से आंखे मिलाना

© मनीषा शुक्ला

16 Mar 2019

तुम्हारी याद का सामान

तुम्हारी याद का सामान होना
सफ़र की मुश्किलें आसान होना

© मनीषा शुक्ला

14 Mar 2019

तुम ख़ुश्बू हो

तुम ख़ुश्बू हो, जिस आँचल में बिखरोगे गन्ध लुटाओगे
मेरी पंखुरियों से बँध कर केवल मुझतक रह जाओगे

इतिहास सँवारोगे या फिर आने वाला कल देखोगे
खुशियों की मांग भरोगे या ये बहता काजल देखोगे
तुम पर है, पालोगे कोई सतरंगी सपना नैनों में
या फिर काजल के घेरे में बंदी गंगाजल देखोगे
मैं भूला-भटका रस्ता हूँ, क्या पाओगे मुझ तक आकर
उस पथ को पूजा जाएगा तुम जिस पर चरण बढ़ाओगे

तुम चन्दा का सिंदूर बनो, इक माथे पर सूरज टाँको
मैं ठहरा एक जलाशय हूँ, मत मुझमें रह-रह कर झाँको
वह रेल कहीं कैसे जाए, जिसकी पटरी से यारी हो
मुझमें अटका रह जाएगा, जल्दी-जल्दी मन को हाँको
वह कुमकुम दूर कहीं, जिसका सौभाग्य तुम्हीं को बनना है
वे प्राण प्रतीक्षा में बैठे, जिनके तुम प्राण कहाओगे

मिलते हैं ये बासन्ती दुःख, सौ पुण्य फलित हों तब जाकर
जब आँगन में रोए तुलसी, पाटल झरते हैं तकिए पर
है भाग्य, अकेला खिलता है सेमल सूनी-सी डाली पर
है भाग्य, सजाए गुलमोहर फूलों के केसरिया झालर
अपने-अपने हिस्से का दुःख, सब जीते हैं, सब गाते हैं
मुझको चुननी है नागफ़नी, तुम हरसिंगार सजाओगे

© मनीषा शुक्ला

3 Mar 2019

बहुत कठिन है

प्यासा होना बहुत सरल है, बहुत कठिन है पनघट होना
जीवन होना बहुत सरल है, बहुत कठिन है मरघट होना

© मनीषा शुक्ला