उत्सव में उल्लास सजेगा, गीतों में मधुमास सजेगा
26 Nov 2021
धरती पर आकाश सजेगा
6 Sept 2021
नहीं क़ाबू मुक़द्दर पर
सभी हैं जीतने वाले, नहीं कोई सिकन्दर पर
नदी के पास नइया है, नहीं माँझी मयस्सर पर
ख़ुदा ने इस क़दर इंसान को मजलूम रक्खा है
लक़ीरें मुट्ठियों में हैं, नहीं क़ाबू मुक़द्दर पर
©मनीषा शुक्ला
4 Sept 2021
28 Jul 2021
नयन से दूर दुखी काजल
बिन साजन के सजनी जैसे रुनझुन बिन पायल
जैसे ख़ुश्बू से हो जाए साँसों की कुछ अनबन
या फिर हाथों से ही जैसे रूठ गया हो कंगन
तुम बिन सारी खुशियाँ मुझसे रूठ गईं हैं ऐसे
ज़्यादा ख़र्चों से जैसे रूठे हों थोड़े पैसे
अब या तो मुझको मिल जाओ, या कर दो पागल
जैसे पूजा के शगुनों में पड़ जाए कुछ अड़चन
सीने में थक कर रुक जाए चलते-चलते धड़कन
ठोकर से पल भर में जैसे दरके कोरा दरपन
दुनियादारी में खो जाए जैसे मन का कचपन
खोई हूँ; जैसे आँखों में सपनों का जंगल
तुम बिन कोई भी तो मुझको देख नहीं पाता है
और पते से मेरे हर ख़त बैरंग ही जाता है
सुनती हूँ, इस बार शहर में ज़्यादा बरसा पानी
मेरी इन प्यासी आँखों की है सारी नादानी
फिर भी मन सूखा है जैसे बिन पानी बादल
©मनीषा शुक्ला
24 Jun 2021
निंदिया छू मंतर
रात छतों पर टाँग रही है तारों के झूमर !
यादों की टकसाल हुई है दो आँखों की जोड़ी
बेचैनी के हाट जिया में; चैन न फूटी कौड़ी
सारी रैन लगा रहता है सपनों पर जुर्माना
करवट से भरना पड़ता है बिस्तर का हर्जाना
काले धन जैसा अँधियारा, चँदा है फुटकर
गूँगा हो कंगन, जैसे पायल को लकवा मारे
बिंदिया उतनी लाल नहीं, कुछ फीके हैं लश्कारे
हारी मैं तो, लाख जतन कर गलहारों से हारी
और नहीं देखी जाती अब झुमके की लाचारी
क्या बिरहन का रूप सँवारें सोने के ज़ेवर
रात पहन ली पुरवाई ने ख़ुश्बू वाली साड़ी
या शायद लौटी थी पगली छूकर देह तुम्हारी
जमुहाई से फूल बिखरते; महकी है अँगड़ाई
छूकर तुमको आज हमारी साँसे बहुत लजाई
आज न बीते रैन, ग़लत हो घड़ियों का अटकर
©मनीषा शुक्ला
22 Jun 2021
हीर बूढ़ी हो गई है
देह के संग अब हृदय की पीर बूढ़ी हो गई है
बिन तुम्हारे भी धड़कता है कलेजा; जान पाई
अब नहीं रहती वहाँ पर एक भी धड़कन पराई
हो गया अरसा तुम्हारी याद से बिछड़े हुए भी
आज पहली बार बिन रोए मुझे भी नींद आई
जो हमें बाँधे हुए थी एक कच्ची डोर जैसे
अब समर्पण की वही ज़ंजीर बूढ़ी हो गई है
आँसुओं में अब हँसी के फूल भी खिलने लगे हैं
एक कमरे से मुझे मेरे निशाँ मिलने लगे हैं
पत्तियों की देह पर फिर ओस के चुंबन सजे हैं
दूर; उड़ने को क्षितिज के पँख भी हिलने लगे हैं
अब विरह की आग में वैसी अगन बाक़ी नहीं है
हो न हो अब प्यार की तासीर बूढ़ी हो गई है
साथ कैसा भी रहे, मिलता वही जो छूटता है
प्रेम होते ही लकीरों से विधाता रूठता है
है अमर वो ही कहानी जो रही आधी-अधूरी
गीत भी मीठा वही जिसमें कलेजा टूटता है
तुम उधर राँझा हुए लौटे न अब तक जोग लेकर
आँख रस्ते पर गड़ाए हीर बूढ़ी हो गई है
©मनीषा शुक्ला
27 May 2021
केवल हमारी याद आती है
तुम्हारे बिन, तुम्हारे साथ रहने में मज़ा ये है
अकेले में हमें केवल हमारी याद आती है
©मनीषा शुक्ला
इसलिए चाँद रोज़ जगता है
रात भर रोज़ सबको ठगता है
खो गया है बाँह का तकिया
इसलिए चाँद रोज़ जगता है
©मनीषा शुक्ला
तुम गए...
धूप से बोलती ही न सूरजमुखी
अब कहीं भी न सेमल दहकता मिले
रंग करने लगा रूप से बेरुखी
तुम गए तोड़कर हर नदी का भरम
झील में कोई मुखड़ा सँवरता नहीं
प्यास के काम आती दुआ ही नहीं
बादलों को हवा ने छुआ ही नहीं
तुम गए, खो गई है ज़मीं की नमी
ज्यों कि सावन कभी भी हुआ ही नहीं
थक गए रोज़ चलकर समय के चरण
पास पल भर, कोई पल ठहरता नहीं
हर घड़ी बर्फ़ सी गल रही है उमर
ओस जैसे टिकी कास के फूल पर
भाग्य में शीत का सूर्य था; इसलिए
शाम ज़्यादा हुई, कम हुई कुछ सहर
प्रेम करना सभी को सुहाता अगर
कोई मिलकर किसी से बिछड़ता नहीं
© मनीषा शुक्ला
25 May 2021
फिर याद आते हो तुम
आज फिर याद आते हो तुम
एक सपना कि जैसे नयन से मिले
देह जैसे अचानक छुअन से मिले
मिल रहे तुम हमें आज कुछ इस तरह
टूटकर चैन जैसे थकन से मिले
लो हथेली थमा दी तुम्हें
चाँद-सूरज उगाते हो तुम ?
आ रही हैं तुम्हें क्या अभी हिचकियाँ
क्या चुभा पैर में द्वार का सातिया
क्या तुम्हें भी चिढ़ाती मिली हैं कभी
एक-दूजे से उलझी हुई खिड़कियाँ
जो तुम्हें याद करती, उसे
किस तरह भूल जाते हो तुम?
प्यार करना, नहीं कुछ जताना कभी
रूठना, पर नहीं है मनाना कभी
है नदी की अगर प्यास से दोस्ती
तो हमें भी हुनर ये सिखाना कभी
मैं लगा ना सकूँ आलता
किस तरह जी लगाते हो तुम?
©मनीषा शुक्ला
22 Mar 2021
तो फिर किस काम का है दिल ?
तुम्हारा ही तुम्हारा है, हमारा नाम का है दिल
फ़िदा रंगीनियों पर है, किसी गुलफ़ाम का है दिल
बला से टूटता है तो किसी दिन टूट ही जाए
अगर तुम पर नहीं आया तो फिर किस काम है दिल
©मनीषा शुक्ला
17 Mar 2021
हमें बदनाम करने में कोई मशहूर हो जाता
हमारी आँख का काजल, किसी का नूर हो जाता
वफ़ा से बेवफ़ाई का यही दस्तूर हो जाता
किसी के काम आ जाती अगर रुसवाइयाँ अपनी
हमें बदनाम करने में कोई मशहूर हो जाता
©मनीषा शुक्ला
15 Mar 2021
हमें बदनाम करने में कोई मशहूर हो जाता
वफ़ा से बेवफ़ाई का यही दस्तूर हो जाता
किसी के काम आ जाती अगर रुसवाइयाँ अपनी
हमें बदनाम करने में कोई मशहूर हो जाता
© मनीषा शुक्ला
9 Mar 2021
किसी के भी नहीं होते
घड़ी भर ख़्वाब को भरकर नज़र में क्यों नहीं सोते
अजब उलझी पहेली हैं, अधूरे हैं न पूरे हम
सभी को चाहते हैं पर किसी के भी नहीं होते
©मनीषा शुक्ला
4 Mar 2021
17 Feb 2021
कोई कहानी चाहिए
जिसकी लकीरें गढ़ सके
जो हर दिशा में बढ़ सके ऐसी रवानी चाहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
हर घाव पर चंदन बने
हर आह पर क्रंदन बने
सपनें भले कम हों, नयन में ख़ूब पानी चाहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
जो चाँद को पहलू भरे
जो रात पर क़ाबू करे
छूकर हवा जिसको थमे, वह रातरानी चहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
रंगीन है हर ओढ़नी
खबरें हुई हैं सनसनी
इस गाँव को अब खेत में मेहंदी उगानी चाहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
हो चाँद पर बंगला जहाँ
बादल बने जंगला जहाँ
सब प्रेमियों को एक दुनिया आसमानी चाहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
हर ज्ञान, संयम खो चला
है भाग्यहीन शकुंतला
दुष्यंत को भूली हुई कोई निशानी चाहिए
कोई कहानी चाहिए ।।
©मनीषा शुक्ला
5 Feb 2021
यही सबकी कहानी है
नहीं चलती खिलौनों की कभी तक़दीर के आगे
जुड़े हैं आसमानों में कहीं पर प्रीत के धागे
यही है बेबसी सबकी, यही सबकी कहानी है
किसी की आंख का सपना, किसी की आंख में जागे
©मनीषा शुक्ला
4 Feb 2021
तुम्हारा फ़ोन आने पर
31 Jan 2021
27 Jan 2021
कभी वो भी तो कहे
किसी जवाब का कब इंतज़ार करता है
वही सवाल मुझसे बार - बार करता है
उसे यक़ीन है मैं उससे प्यार करती हूँ
कभी तो वो भी कहे-'मुझसे प्यार करता है'
©मनीषा शुक्ला
23 Jan 2021
अलग बात है
22 Jan 2021
रास्ते को हारकर रुकना पड़ा
20 Jan 2021
सुख का कोई योग नहीं है
6 Jan 2021
1 Jan 2021
नया साल
उदासी और मायूसी पुराना फ़लसफ़ा बदले
गुलों के रंग बदले तो कभी गुलशन हवा बदले
नए इस साल से कहना पुराने साल बस इतना
अगर कुछ ख़्वाब तोड़े तो हक़ीक़त भी ज़रा बदले
©मनीषा शुक्ला
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