मुस्कराते ओंठ ही तब गीत गाते हैं नयन के
प्रेम के गलते शवों पर, फूलती-फलती प्रथाएँ
मांग में सिंदूर, तारों की जगह भरती निशाएँ
जो जिधर ले जाएगा, उस ओर ही अब चल पड़ेंगी
एक ध्रुव की चाह में भटकी हुईं व्याकुल दिशाएँ
नींद का टुकड़ा न आया हो कभी भी भाग्य जिनके
वो अभागे नैन युग-युग गीत गाते हैं सपन के
मौन काजल बन रहा है आँसुओं के घर निवाला
ओढ़नी के चांद-तारे पी गए सारा उजाला
हस्तरेखा की मरम्मत कर नहीं पाईं हिनाएँ
चूड़ियों के सँग महावर का पड़ा है रंग काला
टूटना जिनकी नियति है, बस उन्हें वरदान है ये
वो सपन ही हर जनम में गीत गाते हैं सजन के
टूटता तन, अनछुआ मन, अंत दुहराती कहानी
भाग्य के चाकर हुए हैं एक राजा, एक रानी
सावनों की देहरी पर प्यास तो बंदी रहेगी
हाँ! मग़र बरसा करेगा आँख का नमकीन पानी
अनमिले ही रह गए हों जो नदी के कूल जैसे
दूर वो सजनी-सजन ही गीत गाते हैं मिलन
© मनीषा शुक्ला