21 May 2019

तन में थोड़ा मन तो होगा

कृष्ण! अभी मथुरा के भीतर कोई वृंदावन तो होगा
तन में थोड़ा मन तो होगा!

जब कोई मतवाली मुरली, अधरों पर अनुनय धर जाए
प्रश्नों के हल सी दो आंखें, आँखों से परिचय कर जाए
सारा ज्ञान किसी दिन जाकर इक मुखड़े की लट से उलझे
एक गुलाबी चूनर आकर जब मोहन के पट से उलझे
उस क्षण सांसो से प्राणों तक महका चन्दनवन तो होगा
तन में थोड़ा मन तो होगा!

जब भौंरों की अठखेली से सरसों की टोली शरमाए
कैसे संभव है, उस पल भी राधा तुमको याद न आए?
जब कोई आँचल की छलनी, छाने धूप, लुटाए छाया
उस पल भी क्या नन्द-जशोदा जैसा याद नहीं कुछ आया?
पत्थर-से सीने में बाक़ी छछिया भर माखन तो होगा
तन में थोड़ा मन तो होगा!

माणिक देकर मूली मोले, नीम समझतें शहद सरीखा
कृष्ण! तुम्हारे ऊधौ जी ने प्रेम नहीं है अबतक सीखा
मन कोई दस-बीस न होते, कौन तुम्हें जाकर समझाए
याद तुम्हारी, गन्ध कुँआरी, साथ रहे पर हाथ न आए
प्यास अगर हममें बाक़ी है, तुममें भी सावन तो होगा
तन में थोड़ा मन तो होगा!

© मनीषा शुक्ला

18 May 2019

मीत मेरे सच बताना!

प्रेम में कुछ गुनगुनाने की अभी संभावना है?
मीत मेरे सच बताना!

हर तरफ जब कोयलों के शव जलाए जा रहे हों
जब वचन के फूल मुर्दों पर चढ़ाए जा रहे हों
गुनगुना पाए न अल्हड़ सी नदी कोई तराना
हर लहर के होंठ पर पत्थर बिछाए जा रहे हों
क्या वही नवगीत गाने की अभी संभावना है?
मीत मेरे सच बताना!

सात जन्मों के लिए संकल्प माँगा जा रहा हो
एक क्षण से एक पूरा कल्प माँगा जा रहा हो
किस तरह कोई समर्पण से भरे सौगन्ध कोई
प्राण से जब देह का वैकल्प माँगा जा रहा हो
इस प्रणय में प्रीत पाने की अभी संभावना है?
मीत मेरे सच बताना!

अनछुई-सी इक छुअन से मन अचानक डर रहा है
देखकर तस्वीर कोई, आंख का काजल बहा है
आज पहली बार यौवन देह को भारी लगा है
रूप ने पहली दफ़ा ही आज दरपन को सहा है
क्या तुम्हें भी भूल जाने की अभी संभावना है?
मीत मेरे सच बताना!

© मनीषा शुक्ला

14 May 2019

चोट खाना सीखते हैं

देखकर कोई सहारा लड़खड़ाना सीखते हैं
इक उमर में फूल से सब चोट खाना सीखते हैं

© मनीषा शुक्ला

2 May 2019

बीमार सोच

अभी-अभी एक वीडियो देखी। जिसमें एक अधेड़ उम्र की महिला कुछ 20-25 साल की लड़कियों को अपने अनुभव की आंच पर पकी सीख दे रही है कि उन्हें "ढंग" के कपड़े पहनने चाहिए, अन्यथा महिलाओं के साथ होने वाली वारदातें जैसे बलात्कार आदि और भी ज़्यादा होंगे। वीडियो में लड़कियां महिला की इस बीमार सोच का पुरज़ोर विरोध करती दिख रही हैं। बहरहाल, महिला का तर्क उचित है या नहीं, इस पर कुछ कहने से पहले मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि वीडियो में लड़कियों द्वारा महिला के साथ किया गया व्यवहार देखकर बहुत निराशा हुई। ये वीडियो देखकर मुझे अनायास ही वो दिन याद आ गए जब मेरी माँ मुझे दुपट्टा ढंग से लेना सिखाती थी, इसलिए नहीं कि यदि मैंने दुपट्टा ढंग से लेना नहीं सीखा तो मेरे साथ कुछ ग़लत हो जाएगा, बल्कि इसलिए क्योंकि पुरुष और स्त्री की शारीरिक संरचना(केवल शारीरिक संरचना) का अंतर वह बख़ूबी जानती थी और मुझे भी वही समझाना चाहती थी। कई बार दिमाग़ की नसों पर पर्याप्त ज़ोर डालने के बाद भी मैं ये नहीं समझ पाती कि ऐसी कौन सी स्वतंत्रता है जो कपड़े उतारने से मिलती है? ऐसी कौन सी समानता है जो हम महिलाएं पुरुषों की नकल कर के हासिल करना चाहती हैं? मैं कभी भी पाश्चत्य परिधानों के विरोध में नहीं रही। न ही कभी पर्दे का समर्थन किया। मैं तो हमेशा से मानती हूँ कि अपने शरीर को कितना ढकना है, कितना दिखाना है, ये निर्णय मेरा होना चाहिए। मग़र मैं ये भी जानती हूँ कि ये निर्णय मेरे कम्फर्ट, मेरी सहूलियत के हिसाब से होना चाहिए। न कि दूसरों की दृष्टि में अपनी स्वतंत्रता या समानता सिद्ध करने के लिए। "महिलाओं को ये समझना चाहिए कि यदि कम कपड़े पहनना आपका अधिकार और स्वतन्त्रता है, तो आपको घूरने की हद तक घूरना पुरुषों की क्षमता और सामर्थ्य। अपनी वेश-भूषा, अपना व्यवहार ऐसा रखें कि करना चाहें या न करना चाहें, आपका सम्मान करना पुरुषों की विवशता बन जाए।" 

© मनीषा शुक्ला