बिन साजन के सजनी जैसे रुनझुन बिन पायल
जैसे ख़ुश्बू से हो जाए साँसों की कुछ अनबन
या फिर हाथों से ही जैसे रूठ गया हो कंगन
तुम बिन सारी खुशियाँ मुझसे रूठ गईं हैं ऐसे
ज़्यादा ख़र्चों से जैसे रूठे हों थोड़े पैसे
अब या तो मुझको मिल जाओ, या कर दो पागल
जैसे पूजा के शगुनों में पड़ जाए कुछ अड़चन
सीने में थक कर रुक जाए चलते-चलते धड़कन
ठोकर से पल भर में जैसे दरके कोरा दरपन
दुनियादारी में खो जाए जैसे मन का कचपन
खोई हूँ; जैसे आँखों में सपनों का जंगल
तुम बिन कोई भी तो मुझको देख नहीं पाता है
और पते से मेरे हर ख़त बैरंग ही जाता है
सुनती हूँ, इस बार शहर में ज़्यादा बरसा पानी
मेरी इन प्यासी आँखों की है सारी नादानी
फिर भी मन सूखा है जैसे बिन पानी बादल
©मनीषा शुक्ला