28 Jun 2020

प्यास



हरेक बूँद में दरिया ही नज़र आता था
हमारी प्यास को पानी ने यूँ तराश दिया

©मनीषा शुक्ला

26 Jun 2020

तुम गए जबसे

तुम गए जबसे, सुबह सूरज जलाना भूल बैठी
तुम गए तबसे, अंगीठी चाँद की ठंडी पड़ी है

तुम गए क्या, रात ने गेसू नहीं तबसे सँवारे
बिन तुम्हारे बोझ लगते हैं गगन को ये सितारे
तुम गए जबसे लहर ने होंठ अपने सी लिए हैं
तुम गए जबसे, नदी से दूर बैठे हैं किनारे

तुम गए जबसे, न कहती रात से कुछ रातरानी
तुम गए तबसे, बगीचे में हिना गूँगी खड़ी है

तुम गए तो खुशबुओं ने फूल से अनुबंध तोड़े
तितलियों ने रंग की कारीगरी के काम छोड़े
तुम गए जबसे, हवा ने पँख गिरवी रख दिए हैं
तुम गए, सब मंज़िलों ने रास्तों से हाथ जोड़े

तुम गए जबसे, न गाया गीत कोई भी हृदय से
तुम गए तबसे, अधर से बाँसुरी हरदिन लड़ी है

कर रहा मन ख़र्च कोई रोज़ तुमको याद करके
चुक गई है नींद सारी आँसुओं का ब्याज भरके
तुम गए हो, अब न तोड़ेंगी कभी उपवास आँखें
तुम गए, सब थम गया है, साँझ तक भी दिन न सरके

तुम गए जबसे, समय की देह नीली पड़ गई है
तुम गए तबसे, बहुत धीमी कलाई की घड़ी है

©मनीषा शुक्ला

19 Jun 2020

RIP Sushant Singh Rajput (सुशांत सिंह राजपूत )




मेरे पिताजी एथलीट बनना चाहते थे, माँ गायिका बनना चाहती थी, भाई पायलट और मैं डांसर। आज पिताजी पत्रकार हैं, माँ गृहिणी, भाई और मैं दोनों इंजीनियर। और हाँ, हमसब जीवित हैं! तुम क्यों चले गए सुशांत! 
ये सवाल उन सब लोगों से भी है जो ज़िन्दगी जी तो रहे हैं, मग़र ज़िंदा नहीं हैं। ऐसे मरे हुए लोग सचमुच किस दिन मौत को गले लगा लें, कुछ नहीं कहा जा सकता।
मेरे पिताजी हमेशा कहते हैं - 
अगर ख़ुश रहना है तो हमेशा उन लोगों की ओर देखो, जो तुमसे भी अधिक वंचित हैं, फिर भी जी रहे हैं। और यदि आगे बढ़ना हो तो उनकी ओर देखना जो तुमसे भी अधिक विपरीत परिस्थितियों में तुमसे बेहतर कर रहे हैं । उनकी इसी बात ने मुझे मेरी हर छोटी-बड़ी उपलब्धि की इज़्ज़त करना सिखाया।
मैंने अपने जीवन में फिल्मों से भी बहुत कुछ सीखा। 'रंग दे बसंती' फ़िल्म में आमिर ख़ान का वो डायलॉग जिसमें वो कहते हैं- 
"कॉलेज के गेट के इस तरफ़ ज़िन्दगी को हम नचाते हैं, और उस तरफ़ ज़िन्दगी हमें नचाती है। कॉलेज के अंदर लोग कहते हैं डी जे में बड़ी बात है। कुछ करेगा डी जे। बाहर दुनिया में अच्छे-अच्छे डी जे पिस गए लाखों की भीड़ में। "
इस फ़िल्म के इस डायलॉग ने मुझे हमेशा इस भ्रम से दूर रखा कि मैं बहुत प्रतिभाशाली हूँ, इसलिए सफलता हर बार मेरे क़दम चूमेगी।
या 'ख़ामोशी' फ़िल्म में मनीषा कोईराला का वो डायलॉग-
"वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमें कोई नामुमकिन सपना न हो।"
इन शब्दों ने हमेशा मुझे यक़ीन दिलाया कि ज़िंदगी आसान बनाने में तो मज़ा है, पर आसान ज़िन्दगी जीने में नहीं।
या फिर 'उड़ता पंजाब' में आलिया भट्ट का वो डायलॉग-
"जब अच्छा वक़्त आएगा तो पूछेंगे उससे - कहाँ था रे? इंतज़ार कर रहा था हमारे टूटने का? देख हम टूटे नहीं हैं। खड़े हैं अपने पैरों पर।"
30 सेकेंड के इस डायलॉग ने मुझे के बताया कि ज़िन्दगी से सचमुच बदला लेने का इरादा है तो उसे उसे तब तक जियो जब तक वो ख़ुद न मर जाए।
और आख़िर में मेरा अपना फेवरिट डायलॉग-
"इतने बड़े सपनें क्यों देखे जाएँ कि उनके सामने ख़ुद को, ख़ुद का वजूद छोटा लगने लगे?"
कुलमिलाकर ये कहना चाहती हूँ कि AIEEE में 7th रैंक लाने वाला, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से मेकैनिकल इंजीनियरिंग करने वाला, झलक दिखला जा और नच बलिए का सबसे कंसिटेन्ट और बेहतरीन डांसर, एम. एस. धोनी के किरदार से लोगों को सुशांत सिंह राजपूत तक लाने वाला व्यक्ति अगर फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं भी हो पाता, तो उसकी महत्ता कम नहीं हो जाती। काश ये बात तुम समझ पाते दोस्त!

©मनीषा शुक्ला

15 Jun 2020

तुम्हारी यादों का सामान

तुम्हारी यादों का सामान
खिड़की को साँसे देता है, दीवारों को कान

हरजाई अख़बार कि जिससे घण्टों बतियाते हो
नासपिटी शतरंज, नहीं तुम जिससे उकताते हो
बैरी चश्मा पल भर को भी नैन न छोड़े ख़ाली
छूकर होंठ तुम्हारे आई चाय भरी ये प्याली
और तुम्हारी टेबल पर मुस्काता मीठा पान
तुम्हारी यादों का सामान

काट रही है बालकनी वनवास तुम्हारा दिन भर
गमले की चंपा की ख़ातिर सौत तुम्हारा दफ़्तर
अलग लगे दरवाज़े की घण्टी को छुअन तुम्हारी
और तुम्हारे बिन लगता है समय घड़ी को भारी
तुम लौटो तो आ जाती है घर में फिर से जान
तुम्हारी यादों का सामान

अधखुलती खिड़की से लिपटे पर्दे की उलझन में
तुम साँसों के चन्दन में, तुम नैनों के दरपन में
तुम तकिए की ख़ुश्बू में, तुम सिलवट में चादर की
तुम घर में, तुम में रहती है परछाईं इस घर की
नाम लिखी तख़्ती की भी है तुमसे ही पहचान
तुम्हारी यादों का सामान

©मनीषा शुक्ला

14 Jun 2020

ज़िन्दगी

ख़्वाब को ख़्वाब की मानिंद दिखाया होता
ज़िन्दगी! ढंग से जीना तो सिखाया होता

©मनीषा शुक्ला

12 Jun 2020

एहसास



किसी ख़ुश्बू के जैसा है तेरे एहसास का होना
तुझे पाना भी मुश्किल है, तुझे खोना भी मुश्किल है

©मनीषा शुक्ला

11 Jun 2020

तुम सँजो लो!

हर घड़ी जिसको लुटाती जा रही है भाग्यरेखा;
हो सके तो तुम सँजो लो!

जिस नयन में एक आँसू भी नहीं ठहरा ख़ुशी से
पढ़ रहे हैं होंठ जिसके, मंत्र तर्पण के अभी से
दान ऐसा; जो अखरता ही रहा बस याचना को
मौन ऐसा; कह न पाया बात अपनी जो किसी से

मर गया वह दुःख अभागा, आज भरकर आँख रो लो!
हो सके तो तुम सँजो लो!

एक सूरज के लिए जलता रहा आकाश सारा
और धरती माँगती ही रह गई कोई सितारा
बाँटनेवाला बहुत अनुदार अपनी भूमिका में
मिल गए दोनों जहाँ, पर दे न पाया वह किनारा

अब तुम्हीं बढ़कर ज़रा आकुल क्षितिज के पँख खोलो!
हो सके तो तुम सँजो लो!

अब समर्पित है तुम्हीं को, चाह लो या राह अपनी
धर्म ख़ुश्बू का बिखरना, कब उसे परवाह अपनी
तुम निठुर हो भी गए तो मन बनेगा आज बादल
ख़ूब बरसेंगे नयन जो सह न पाए दाह अपनी

आज इस गीले हृदय में प्रार्थना के बीज बो लो !
हो सके तो तुम सँजो लो!

©मनीषा शुक्ला

10 Jun 2020

कविता



‘कविता’ का काम समाज की संवेदनाओं को दुरुस्त करना है ।

©मनीषा शुक्ला