15 Sept 2020

बाबुल का 'सरनेम'

करूँगी पूरा-पूरा प्रेम;
केवल कुछ दिन और लिखूँगी बाबुल का 'सरनेम'

आँगन का झूला गोदी में भरकर कहता मुझसे
जितना पाएगी, उतना ही छूट रहा है तुझसे
चौरे की तुलसी ने मुझको आज निहारा दिनभर
बिटिया! हम दोनों इक जैसे "घर में, घर से बाहर"

पिंजरे का मिट्ठू कहता है "हम दोनों हैं सेम"

सौंप रही है मुझको मेरा बचपन इक अलमारी
गुड़िया के शीशे ने हँसकर मेरी नज़र उतारी
हद से ज़्यादा मुस्काती हैं मेरी प्यारी सखियाँ
इनसे ज़्यादा बोल रही हैं इनकी भोली अँखियाँ

काश घड़ी ग़ायब कर देता 'पोषम-पा' का गेम

मेरे सपनों से ऊँचा है शादी का शमियाना
मेरा अम्बर माँग रहा है पँखों का नज़राना
मुझको देख सुबह से खिलते, रात सरीखे भरते
लेकिन बेटी तो बेटी है, माँ-बाबा क्या करते

दादी कहती पँख लगा कर उड़ जाता है 'टेम'

वर के चंदन और वधू की मेहंदी की हमजोली
'बन्ना-बन्नी', 'गारी' के गीतों की मीठी बोली
दरवाज़े पर वन्दनवार लिए मुस्काती कीलें
पलकों तक आ-आ कर लौटें नम आँखों की झीलें

कैसे इतनी याद समेटे फ़ोटो का इक 'फ्रेम' 

©मनीषा शुक्ला

14 Sept 2020

वो घर से आज तुझको याद करने निकला है

फ़क़ीर दिल को भी शहज़ाद करने निकला है
मेरी तनहाइयाँ आबाद करने निकला है
ये कहने आई थी हिचकी मुझे तसल्ली रख
वो घर से आज तुझको याद करने निकला है

©मनीषा शुक्ला

अख़बार

हमें इक़रार है लेकिन, तुम्हीं इज़हार कर लेना
हमारे प्यार की ख़ातिर, हमें बस प्यार कर लेना
हमें मुश्किल बयां करना मुहब्बत का फ़साना है
लबों की सुर्खियां पढ़ के, हमें अख़बार कर लेना

©मनीषा शुक्ला

इश्क़ कैसा जो, सलामत छोड़ देता है

मुहब्बत हो जिसे जाए, इबादत छोड़ देता है
डरा जो दर्द से अक्सर, मुहब्बत छोड़ देता
न जाए जान जब तक, दिल बहुत बेचैन रहता
भला वो इश्क़ कैसा जो, सलामत छोड़ देता है

©मनीषा शुक्ला

हमने दो आंखों में पूरी दुनिया देखी है

लम्हों में कट जाने वाली सदियां देखी है
सागर की बाहों में कलकल नदिया देखी है
दुनिया वालो तुम देखो सूरज-चाँद-सितारे
हमने दो आंखों में पूरी दुनिया देखी है

तुम्हारे नाम की चिट्ठी, हमारे नाम

अगर तुम दर्द दे दो सब दवाएँ काम आ जाए
तुम्हारी याद में कुछ नींद को आराम आ जाए
इन्हीं बदनामियों में नाम हम कर जाएं जो इक दिन
तुम्हारे नाम की चिट्ठी, हमारे नाम आ जाए

©मनीषा शुक्ला

हमारा दिल न संभलेगा, मग़र तुम जान मांगोगे

मुहब्बत के लिए इंसान से भगवान मांगोगे
उधर दिल भी चुराओगे, कहीं ईमान मांगोगे
इसी मासूमियत पर मत मिटे हैं, जानते हैं हम
हमारा दिल न संभलेगा, मग़र तुम जान मांगोगे

©मनीषा शुक्ला

हमारे मुल्क़ में भगवान की तस्वीर बिकती है

कहीं पर ख़्वाब बिकते हैं, कहीं ताबीर बिकती है
ज़रूरत के मुताबिक भूख की तासीर बिकती है
ज़माना सीख ले हमसे इबादत की सही सूरत
हमारे मुल्क़ में भगवान की तस्वीर बिकती है

©मनीषा शुक्ला

प्यार में दिल ये टूटे, दुआ कीजिए

इश्क़ है गर ख़ता, ये ख़ता कीजिए
प्यार में दिल ये टूटे, दुआ कीजिए
डूबकर उसकी आँखों के सैलाब में
मौत को ज़िन्दगी से बड़ा कीजिए

©मनीषा शुक्ला

13 Sept 2020

समझौता

कल नदी के तीर पर दो दीप देखे मुस्कुराते
एक पल में सौ जनम के साथ की कसमें उठाते

कल जिएंगे या मरेंगे; ये न जाने क्या करेंगे
जब प्रणय के देवता अंगार फूलों पर धरेंगे
रेत पर सतिया बनाकर, चूमते हैं भाग्यरेखा
ये भला शुभ-लाभ वाली अटकलों से क्या डरेंगे
हैं बहुत भोले, न कुछ भी जानते हैं ये अभागे
बीत जाएगी उमर सरसों हथेली पर उगाते

कल ज़माना रीतियों की दे रहा होगा दुहाई
प्रेम के इस रूप को कुल मान लेगा जग-हँसाई
नेह के व्यापार में सम्बन्ध की बोली लगेगी
जीत जाएगी अँगूठी, हार जाएगी सगाई
बेबसी की चीख पर भारी पड़ेंगे मंत्र के स्वर
शव उठेगा हर वचन का, धूम से, गाते-बजाते

एक कोना मन हमेशा एक-दूजे से छिपाकर
ज़िन्दगी पूरी जिएँगे, रोज़ आधा प्यार पाकर
एक-दूजे में तलाशेंगे हमेशा तीसरे को
एक-दूजे को मिलेंगे ये हमेशा और कमतर
फिर किसी दिन ज़िन्दगी से आँख मिलने पर कहेंगे
एक समझौता हुआ था, बस उसी को हैं निभाते

©मनीषा शुक्ला

12 Sept 2020

याद करते, भूल जाते


ऊब जाती है घड़ी ठहरा हुआ लम्हा बिताते
कट रहे हैं दिन किसी को याद करते, भूल जाते

फिर महक लेकर किसी की हैं सुबह ने केश धोए
रात भर रो कर गगन ने मोतियों के बीज बोए
फिर किसी तस्वीर के सब रंग फूलों में मिले हैं
उस हँसी में ही खनकती धूप ने आँचल भिगोए
रात का चंदा न जाने अब कहाँ, किस ठौर होगा
बीतता है दिन किसी के साथ सूरज को निभाते 

फिर हुआ भारी किसी को याद करके साँझ का मन
दौड़कर परछाइयों के साथ कुछ थक-सा गया तन
रौशनी को दे विदाई लौटता सूरज अभागा
पोंछता है आँख, पानी में नदी के देख दरपन
टूटते ज़िंदा सितारे, प्रेम में असहाय होकर
रौशनी के वास्ते हैं चांद को ईंधन बनाते

फिर हवाएँ छेड़ती हैं गंध डूबी रातरानी
होंठ पर फिर कसमसाई एक भूली-सी कहानी
फिर अंधेरा चांदनी की चाशनी में घुल रहा है
लाँघता है फिर नयन की देहरी दो बून्द पानी
याद आई ज़िन्दगी के छंद से ख़ारिज जवानी
फिर कटेगी रात पूरी गीत कोई गुनगुनाते 

©मनीषा शुक्ला

8 Sept 2020

थाली के बैंगन

सजन तुम रूप, तुम्हीं यौवन
झाँकू रोज़ नयन में, देखूँ मनचाहा दरपन

चूल्हे में संसार पड़े; मैं मोती रोज़ लुटाऊँ
दूध नहाऊँ, पूत फलूँ मैं, सौ सौभाग कमाऊँ
धरती के चक्कर में चंदा, धरती चाहे सूरज
एक हमारी जोड़ी ही सबको लगती है अचरज

राम मिलाए जोड़ी अपनी ज्यों पानी-चंदन

तुमको नजर न लागे बालम बैरी हुआ जमाना
सीता, चंपा, मधुबाला की बातों में मत आना
तुमको देख खुला करता है महलों का चौबारा
गोरा रंग हुआ जामुन सा, ऐसे कौन निहारा

रोज़ तुम्हें अब लगवाऊँगी काजल का उबटन

जो थाली पर माता है, जो मधुमासों में रम्भा
वक़्त पड़े तो बन जाती है वो भी चंडी-अम्बा
साथ तुम्हारे जीना-मरना दोनों कर सकती हूँ
लेकिन तुमको बिन मारे मैं कैसे मर सकती हूँ?

रहना मेरी ओर सदा ओ 'थाली के बैंगन' !

©मनीषा शुक्ला