29 Oct 2017

नभ की पीर लिए वसुधा को कोई सावन छू निकला


आज तुम्हारे दो नैनों का
हमको चुम्बन छू निकला
मन की देहरी को जैसे
भावों का आंगन छू निकला

आज नहीं आह्लाद है कोई, ना ही कोई उत्सव
बिना किसी त्यौहार भला क्यों गूँजे मन में कलरव
तन दमका कुंदन के जैसा
सांसे चंदन छू निकला

मिली भाग्य से हमको-तुमको इक जैसी रेखाएं
जन्म-जन्म में तुम्हे मिलें हम, तुमको ही हम पाएं
मिले हमें तुम, ज्यों प्राणों को
पूजन-तर्पण छू निकला

अनुष्ठान सी छुअन तुम्हारी, पत्थर भी हो पावन
देह छुई, साँसों को दे बैठे इक मधुर निवेदन
नभ की पीर लिए वसुधा को
कोई सावन छू निकला

© मनीषा शुक्ला

23 Oct 2017

शब्द के संताप

तुम अजन्मे, हम अमर युग-युग रहे हैं
श्वास के अभिशाप दोनों ने सहे हैं

मुक्त शब्दों को अधर से बिन किए तुम
औ‘ प्रलय का नीर नैनों में लिए हम
अनलिखे तुम और हम भी अनकहे हैं
शब्द के संताप दोनों ने सहे हैं

तुम विवशता से बँधे तटबँध जैसे
हम निभाते धार के अनुबँध जैसे
तुम अडिग, हम छू किनारों को बहे हैं
कूल के परिमाप दोनों ने सहे हैं

दे सके ना तुम हमें वर कोई ऐसा
देव ! कर पाता हमें जो एक जैसा
देवता बन तुम, मनुज बन हम दहे हैं
भाग्य के परिताप दोनों ने सहे हैं

© मनीषा शुक्ला

13 Oct 2017

अगर मिली है नज़र खुदा से,

अगर मिली है नज़र खुदा से, इधर भी देखें उधर भी देखें
यक़ीन रखिए हमीं मिलेंगे, नज़र की हद तक जिधर भी देखें

अभी नहीं है हरी तबीयत, अभी न दिल को सुकून हासिल
हमें हुई तो है दीद उनकी, दवा मिली, अब असर भी देखें

ज़रा हटाया नक़ाब रुख़ से, कि आज बदले मिज़ाज सबके
तमाम बिखरी हैं सुर्खियां पर, जो ख़ास थी वो ख़बर भी देखें

हमें वफ़ा थी शरीक-ए-आदत, मग़र ख़ुदा की हुई इनायत
ये ऐब क़ाबू हुआ हमारा, ज़रा तुम्हारा हुनर भी देखें

किसी नज़र में नहा के ख़ुश्बू, फिरे चमन में बहार बनके
महक रहें हैं सभी नज़ारे, ज़रा महकती नज़र भी देखें

© मनीषा शुक्ला

8 Oct 2017

चाँद

आज हमारा चाँद देखने, आंगन उतरा चाँद
क्या बतलाएं कितना टूटा, कितना बिखरा चाँद 
 
वही अदाएं, वही जवानी, उतना ही शफ्फाक
मुझसे मेरा चाँद चुराके, कितना निखरा चाँद 
 
मेरे चंदा से महफ़िल में चांद लगे थे चार
इतनी सी थी बात, इसी पे, कितना उखड़ा चाँद 
 
आज रात से या कि चांदनी से थी कुछ अनबन
आज लगा है कितना भूला, कितना बिसरा चाँद 
 
जैसे छोटा बच्चा मांगे मां से कोई खिलौना
मिली रात पूनम की जब तो, कितना पसरा चांद

© मनीषा शुक्ला

7 Oct 2017

शब-ए-वस्ल

ये मत पूछ शब-ए-वस्ल मेरा हाल क्या है
यही जवाब है मेरा, तेरा सवाल क्या है?

© मनीषा शुक्ला

4 Oct 2017

मेरी ज़िंदगी

अब संवरने लगी है मेरी ज़िंदगी
इश्क़ करने लगी है मेरी ज़िंदगी
मुझको जीना सिखाने चली थी मग़र
तुमपे मरने लगी है मेरी ज़िंदगी

© मनीषा शुक्ला

3 Oct 2017

जुदा नहीं तुझसे

जा तू इत्मिनान रख, खफ़ा नहीं तुझसे
दूरी हुई तो क्या मग़र जुदा नहीं तुझसे

© मनीषा शुक्ला