14 Mar 2019

तुम ख़ुश्बू हो

तुम ख़ुश्बू हो, जिस आँचल में बिखरोगे गन्ध लुटाओगे
मेरी पंखुरियों से बँध कर केवल मुझतक रह जाओगे

इतिहास सँवारोगे या फिर आने वाला कल देखोगे
खुशियों की मांग भरोगे या ये बहता काजल देखोगे
तुम पर है, पालोगे कोई सतरंगी सपना नैनों में
या फिर काजल के घेरे में बंदी गंगाजल देखोगे
मैं भूला-भटका रस्ता हूँ, क्या पाओगे मुझ तक आकर
उस पथ को पूजा जाएगा तुम जिस पर चरण बढ़ाओगे

तुम चन्दा का सिंदूर बनो, इक माथे पर सूरज टाँको
मैं ठहरा एक जलाशय हूँ, मत मुझमें रह-रह कर झाँको
वह रेल कहीं कैसे जाए, जिसकी पटरी से यारी हो
मुझमें अटका रह जाएगा, जल्दी-जल्दी मन को हाँको
वह कुमकुम दूर कहीं, जिसका सौभाग्य तुम्हीं को बनना है
वे प्राण प्रतीक्षा में बैठे, जिनके तुम प्राण कहाओगे

मिलते हैं ये बासन्ती दुःख, सौ पुण्य फलित हों तब जाकर
जब आँगन में रोए तुलसी, पाटल झरते हैं तकिए पर
है भाग्य, अकेला खिलता है सेमल सूनी-सी डाली पर
है भाग्य, सजाए गुलमोहर फूलों के केसरिया झालर
अपने-अपने हिस्से का दुःख, सब जीते हैं, सब गाते हैं
मुझको चुननी है नागफ़नी, तुम हरसिंगार सजाओगे

© मनीषा शुक्ला

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