1 May 2020

चल रोप लें थोड़े सितारे

रात का मतलब अँधेरा ही न समझें पीढियां कल
जोत कर आकाश को चल रोप लें थोड़े सितारे

चाँदनी रिश्वत बिना कुछ भी नहीं करती यहाँ पर
इंच भर चढ़ती नहीं अब, हो गई है धूप अजगर
पर सुना है जुगनुओं में आज भी थोड़ी नमी है
एक विधवा साँझ को देते दिलासा, रोज़ जलकर
सीख जाएगी सियाही आँसुओं से बात करना
बस इसे काजल बनाकर बाँध आँखों के किनारे

गिर चुकी ईमान से, आँधी बनीं सारी हवाएँ
दे रही हैं मश्विरा, हम दीप से घर को बचाएँ
पेट भरना तो नहीं केवल ज़रूरत आदमी की
है ज़रूरी, धान के संग आज अँगारे उगाएँ
बदलियों के केश उलझा चाँद पूजें हम भला क्यों
आज करवाचौथ सोचे, आज यह पूनम विचारे

ये बयां है रोशनी का आँख में पलती रहेगी
आग का उबटन निशा की देह पर मलती रहेगी
एक चिन्गारी बड़ी नादान, उसने ठान ली है
जिस तरफ़ होगा अँधेरा, उस तरफ़ चलती रहेगी
वो न जागा, तो न होगी भोर, समझेगा उजाला
साथ सूरज के अगर मन डूब जाएँगे हमारे

© मनीषा शुक्ला

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