24 Apr 2022

जंगली फूलों

जंगली फूलों तुम्हारी ख़ुश्बुओं का मोल क्या है
तुम कि जैसे रूप के माथे लगा काजल डिठौना

जन्म; जैसे एक अनचाही दुआ स्वीकार होना
मृत्यु, जैसे क्यारियों की क़ौम पर उपकार होना
उम्र जैसे हो घड़ी की नोंक पर ठहरा हुआ पल
तुम धरा की देह पर मानो न मानो भार हो ना?

देख तुमको कनखियों से सोचता है आज उपवन
गन्ध का कैसे हवा से हो गया बेमेल गौना

व्यय हुआ तुम पर तभी तो हो गया बेरंग पानी
देख तुमको ही नहीं आई बहारों तक जवानी
हाँ! तुम्हीं को देखकर काँटे सभी इठला रहे हैं
ठूँठ, खर-पतवार तुममें ढूँढते हैं एक सानी

तोड़कर तुमको विदाई दे रही है डाल ऐसे
फेंकती हो आँधियों की राह में जैसे खिलौना

प्रेम के प्रस्ताव का अनुवाद बन पाए नहीं तुम
फिर प्रणय की सेज के भी काम कुछ आए नहीं तुम
तुम न सज पाए किसी नवयौवना के कुन्तलों में
देवताओं के हृदय को आजतक भाए नहीं तुम

तुम कसकते ही रहे हो हर किसी की आँख में यूँ
ज्यों किसी मीठे सपन की नींद को चुभता बिछौना

©मनीषा शुक्ला

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