20 Jan 2024

चिढ़ाती दफ़्तर की फ़ाइल

चिढ़ाती दफ़्तर की फ़ाइल
गायब है चेहरे से घर से आई वो स्माइल!

लंच टिफिन में आया लेकिन स्वाद किचिन में छूटा
बिन पानी के टीस रहा मेरे गमले का बूटा
ब्लेजर में घुटती जाती है सकुचाती सी चुन्नी
देख घड़ी हाथों में अब तो कंगन काटे कन्नी

चार दफ़ा; दो पल में समय दिखाता मोबाइल!

दिन ढल जाए कंप्यूटर पर करते-करते करतब
एक्सेल, वर्ड धरम है; अब तो डाटा अपना मज़हब
पिछली मीटिंग से छूटे; करनी है अगली मीटिंग
समय बचाते हैं करके हम संबंधों से चीटिंग

ज्यों मिट्टी से नज़र चुराए ऑफिस की टाइल!

सुबह चले, फिर साथ हमारे लौटे सूरज थककर
खुशियां सिमट गई हैं अपनी संडे, सैटरडे पर
शाम, सुबह देखी है, देख न पाए हम दोपहरी
ईएल, सीएल, एचपीएल पर अपनी दुनिया ठहरी

अंतिम हफ़्ते से वेतन की दूरी सौ माइल!

©मनीषा शुक्ला

17 Jan 2024

तुम्हारे आने से भगवान

तुम्हारे आने से भगवान
क्या जाने धरती पर फिर से जी उठ्ठे इंसान!

यूं तो तुलसी ने जीवन भर रामचरित ही गाया
राम लला को पर दुनिया ने पूजा तक ही पाया
अब फिर से उम्मीद जगी है; कुछ तो अब बदलेगा
मंदिर के बाहर भी कोई नाम तुम्हारा लेगा

शायद मूरत से आ जाए मानवता में प्राण !

केवट या शबरी बनने को कोई कब है राज़ी
राम लला के दर्शन की पर होड़ लगी है ताज़ी
जग ने ढूंढा बचने का सबसे आसान तरीका
जिसको मुश्किल जाना उसको ईश्वर कहना सीखा

मंदिर के दर्शन से कुछ तो मन होगा आसान!

पहले से ईश्वर थें; फिर क्यों राम बने नारायण?
रामचरित क्यों आई जब पहले से थी रामायण?
इन प्रश्नों का उत्तर भी तो रामकथा से चुनते
हम रघुवर के संघर्षों को थोड़ा-थोड़ा गुनते

पर मुँह बनने की जल्दी में सुनना भूले कान!

©मनीषा शुक्ला