20 Nov 2017

कुछ तेरी थी कुछ मेरी थी

इंगित के थे सब अर्थ सरल
आंखों ने किए प्रयास सकल
वो बुद्धि की खींचा-तानी
दिल की मनमानी मेरी थी
वो शब्दों की आनाकानी
कुछ तेरी थी, कुछ मेरी थी

कितने अवसर मिल जाते थे
तब मेरे मन को पढ़ने के
कुछ अर्थों के आईने में
नभ-नखत प्रेम का जड़ने के
पर हाय! मौन की बलि चढ़ी
वाचाल कहानी मेरी थी

आपस में बांटा करते थे
हर पल जीवन के कर्ज़े का
मैं अभिनय में अपराजित
तू अज्ञानी अव्वल दर्जे का
फिर भी शत-शत अवसर तुझको
देती नादानी मेरी थी
वो शब्दों की आनाकानी
कुछ तेरी थी कुछ मेरी थी

© मनीषा शुक्ला

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