13 Feb 2018

खो नहीं जाना कभी तुम!

ढूँढ़ना आसान है तुमको बहुत, पर मीत मेरे,
खो नहीं जाना कभी तुम!

पीर की पावन कमाई, चार आँसू, एक हिचकी
मंत्र बनकर प्रार्थनाएँ मंदिरों के द्वार सिसकी
पर तुम्हारी याचनाओं को कहाँ से मान मिलता
देवता अभिशप्त हैं ख़ुद, और है सामथ्र्य किसकी?
शिव नहीं जग में, प्रणय जो सत्य कर दे
मांगने हमको नहीं जाना कभी तुम!

तृप्ति से चूके हुए हैं, व्रत सभी, उपवास सारे
शूल पलकों से उठाए, फूल से तिनके बुहारे
इस तरह होती परीक्षा कामनाओं की यहाँ पर
घंटियों में शोर है पर देवता बहरे हमारे
महमहाए मन, न आए हाथ कुछ भी
आस गीली बो नहीं जाना कभी तुम!

जग न समझेगा, मग़र हम जानते हैं मन हमारा
प्रीत है पूजा हमारी, मीत है भगवन हमारा
हम बरसते बादलों से क्यों कहें अपनी कहानी
है अलग ही प्यास अपनी, है अलग सावन हमारा
गुनगुनाएँ सब, न समझे पीर कोई
गीत का मन हो नहीं जाना कभी तुम!

© मनीषा शुक्ला

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