18 Apr 2018

आदाब नींदों के


न तो सूरज हुए इनके, न हैं महताब नींदों के
हमें मुद्दत हुई, आए नहीं आदाब नींदों के
हमारी और उनकी नींद का हासिल यही बस है
उधर हैं ख़्वाब नींदों में, इधर हैं ख़्वाब नींदों के

©मनीषा शुक्ला

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