8 Aug 2019

नदी

इस नदी को नाव अपनी सौंपना मत आज नाविक!
इस नदी का है किसी तूफ़ान से नाता पुराना

इस नदी में मछलियाँ भी डूबकर मरती रही हैं
इस नदी से प्यास की परछाइयाँ डरती रही हैं
इस नदी ने रेत की सारी नमी नीलाम कर दी
रोज़, लहरें इस नदी की ख़ुदकशी करती रही हैं
इस नदी में है ज़माने की उदासी का ठिकाना
इस नदी का है किसी तूफ़ान से नाता पुराना

इस नदी के तीर पर लाशें मिलीं पतवार की कल
ये धधकती है निरंतर, इस नदी का आग है जल
इस नदी ने पोंछ डाले रेत के अनगिन घरौंदे
गर्भ से इसने गिराए मोतियों के सीप निर्बल
जानती ही ये नहीं तटबंध कोई भी निभाना
इस नदी का है किसी तूफ़ान से नाता पुराना

यह नदी पीती रही है मन्नतों के दीप सारे
इस नदी ने प्रार्थनाओं के सभी अवसर नकारे
इस नदी के कोर पर ठहरा दिवाकर रो रहा है
इस नदी में टूटते हैं भाग्य से हारे सितारे
ये न जाने प्रेम-पत्रों की अमिट स्याही पचाना
इस नदी का है किसी तूफ़ान से नाता पुराना

© मनीषा शुक्ला

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