4 Nov 2019

ह्रदय चढाऊँ, तब मानोगे?

श्रद्धा की अनदेखी करके
अपना ही उपहास किया है
ईश्वर होकर लज्जित अपना
पूजन, व्रत, उपवास किया है
आँसू के कच्चे मोती का
आभूषण स्वीकार नहीं है
तो फिर तुमको पूजे जाने
का कोई अधिकार नहीं है
दरपन लेकर द्वार तुम्हारे आई हूँ, कब पहचानोगे ?
ह्रदय चढाऊँ, तब मानोगे?

प्रेम अगर परखा जाए तो
अग्नि-परीक्षा भी सह लेगा
और किसी तुलसी के मुख से
ख़ुद को, दुनिया से कह लेगा
लेकिन प्रश्न करेगा निश्चित
हर रघुकुल के सिंहासन से
किस धोबी का, कैसा हित था
एक सिया के निर्वासन से?
तन सोना है, मन है लोहा, पीर पराई क्या जानोगे ?
ह्रदय चढाऊँ, तब मानोगे?

कौन प्रमाण दिया करता है
प्राणों को जीवित होने का?
कैसे भोर छिपाए ज़ेवर
सूरज के पीले सोने का?
रजनीगंधा, देह चुरा ले
सबकुछ फिर भी गन्ध कहेगी
उगता हो या ढलता चंदा
किरण हमेशा किरण रहेगी
रातों से अंधियारा, दिन से धूप भला कैसे छानोगे ?
ह्रदय चढाऊँ, तब मानोगे?

आज अगर ठुकराओगे, कल
आलिंगन से मर जाएगा
और अगर ज़िद पर आया तो
जो कहता है, कर जाएगा
प्यासी धरती पर बरसेगा
तब सावन का सानी होगा
वरना बारिश का हर क़तरा
केवल पानी-पानी होगा
जब माटी का मोल न होगा, किसको जीवन वरदानोगे ?
ह्रदय चढाऊँ, तब मानोगे?

©मनीषा शुक्ला

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