24 Dec 2020

किसी ने देखा टूटा चाँद

किसी ने देखा टूटा चाँद
अम्बर के कोने में सिमटा रूठा-रूठा चाँद

चिंगारी से रूठ गया हो जैसे घर का चूल्हा
मुझसे रूठ गया है चँदा ज्यों दुल्हन से दूल्हा
लाड़ लड़ाऊँ या फिर ख़ूब सुनाऊँ मीठा-कोसा
या उसके माथे पर रख दूँ इन आँखों का बोसा

दुनिया के हिस्से में आए मेरा जूठा चाँद!


पूरा, आधा और कभी तो दिखता है चौथाई
और कभी ग़ुम हो जाता; बदली की ओढ़ रज़ाई
ऐसे साजन से कोई भी कैसे प्रीत लगाए
इक पल में 'साथी'; दूजे पल में 'मामा' बन जाए

तीजे पल पलने में खेले चूस अँगूठा चाँद !

इतनी सी थी बात इसी पर रूठा है हरजाई
सबसे आँख बचाकर मिलने छत पर रात न आई
क्या बतलाऊँ, घात लगाए बैठा था ध्रुव तारा
मैंने जल्दी में उसको ही 'मेरा चाँद' पुकारा

सचमुच ही तबसे गुस्सा है झूठा-मूठा चाँद !

©मनीषा शुक्ला

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