MANISHA SHUKLA
27 May 2021
इसलिए चाँद रोज़ जगता है
फिर किसी के लिए सुलगता है
रात भर रोज़ सबको ठगता है
खो गया है बाँह का तकिया
इसलिए चाँद रोज़ जगता है
©मनीषा शुक्ला
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