24 Dec 2023

धरती के हिस्से में आया बिन मांगे ही प्यार

कहीं पर चटका है मंदार
धरती के हिस्से में आया बिन मांगे ही प्यार

हार चुका है मन, करके मौसम की मान मनौती
बादल समझे बैठे हैं बूंदों को आज बपौती
थककर धरती ने भी कर ली है सूरज से यारी
रेतीले सोने से खुद ही अपनी देह सँवारी

तपते मरुथल पर जँचता है अब ये तेज़ बुख़ार

सागर की आशा में कब तक नदियों को ठुकराती
इससे अच्छा था पानी को जी भर प्यास लजाती
अपने सुख-दु:ख लेकर आती है हर प्रेम-कहानी
पर इस बार हुआ ऐसा याचक को तरसा दानी

कीकर के गहनों से जलता देखा हरसिंगार

दुनिया दु:खियारे के दु:ख में सुख ढूंढा करती है
पनघट को ख़ाली करके ही तो गागर भरती है
मांगे भीख न मिलती पर बिन मांगे, पाए मोती
काश किताबों से इतनी-सी बात समझ ली होती

सारी दुनियादारी ही हो जाती तब बेकार

©मनीषा शुक्ला

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