14 Feb 2019

पुलवामा

शौर्य का इतिहास लिखना था हमें अपने लहू से
इसलिए हम प्रेम की गाथा अधूरी छोड़ आए

उत्सवों की आंख गीली, प्रेम का त्योहार रूठा
चाँद की चूड़ी दिलाना फिर उसे इस बार छूटा
हम कलेजे को कलेजे से लगाकर रो न पाए
मज़हबों की साज़िशों ने प्यार का संसार लूटा
पंखुरी से होंठ, उलझी लट, नए मेहंदी-महावर
काम जाने और भी कितने ज़रूरी छोड़ आए

गांव का पनघट, कहीं आँगन तरसता छोड़ आए
हम किसी की आँख में सावन बरसता छोड़ आए
छोड़ आए हम बुढ़ापे को दिलासे के सहारे
अनसुनी किलकारियां, यौवन लरजता छोड़ आए
थी बसन्ती रंग से रँगनी हमें ये ज़िंदगानी
हम प्रणय की सेज पर सपने सिंदूरी छोड़ आए

मां! तुम्हारी आंख का तारा, सितारा बन गया है
मृत्यु का अभिमान, जीवन का दुलारा बन गया है
भारती की आरती जिससे उतारी जा सकेगी
अब पिता के ख़ून का क़तरा अँगारा बन गया है
एक अम्बर में नहीं दो सूर्य शोभित हो सकेंगे
इसलिए धरती-गगन के बीच दूरी छोड़ आए

© मनीषा शुक्ला

No comments:

Post a Comment