22 Apr 2019

परिचय

फिर मिले या मिल न पाए, जग! तुझे दीपित अँधेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

सूर्य से पहले जली हूँ, चाँद से पहले ढली हूँ
चूमकर पदचिन्ह अपने, नाश पथ पर मैं चली हूँ
मैं सृजन का वंश हूँ, मैं ही प्रलय की उत्तरा हूँ
सेज पर अंगार के सोई हुई मादक कली हूँ
प्राण में मेरे पलेगा मृत्यु का कोई चितेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

वेदना का मोल पाकर, पीर की टकसाल होकर
मैं सदा फूली-फली हूँ आंसुओं के बीज बोकर
एक जुगनू सा अकेला जल रहा मुझमें दिवाकर
जागते मुझमें गगन के दीप सारी रात सोकर
रोज़ मेरे नैन का काजल उगलता है सवेरा मांग!
परिचय मांग मेरा!

है ह्रदय में आग बाक़ी, मेघ नैनों में सँवरते
कंठ में पीड़ा बसी है, गीत अधरों पर उतरते
पीर का यह गाँव मैंने ही बसाया है, अभागे!
दो घड़ी सुख-चैन जिसकी छांव में आकर ठहरते
सृष्टि सारी मांगती जिस टूटते घर में बसेरा
मांग! परिचय मांग मेरा!

© मनीषा शुक्ला

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