5 Dec 2017

महज़ इक ख़्वाब थे हम

महज़ इक ख़्वाब थे हम और कुछ ज़्यादा नहीं था
वो कल भी था मुक़म्मल, आज भी आधा नहीं था 

© मनीषा शुक्ला

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