20 Jan 2021

सुख का कोई योग नहीं है

हम-तुम एक धरा पर फिर भी मिलने का संयोग नहीं है
प्रेम गणित है ऐसा  जिसमें सुख का कोई योग  नहीं  है

दूरी जिससे कम हो जाए ऐसी कोई राह नहीं है
और तुम्हारे बिन मंज़िल से मिलने की भी चाह नहीं 
पत्थर का सीना पिघलाए फूलों में वो आह नहीं है 
आज मरें हम, कल मर जाएं, दुनिया को परवाह नहीं 

बादल से सावन, सागर से मोती, नदियों से गंगाजल
सारे जल-जीवन में केवल 'आँसू' का उपयोग नहीं है

साँसों का संगीत जिन्हें लगता है धड़कन की मजदूरी
मृगछौने से ज़्यादा प्यारी होती है जिनको कस्तूरी
कैलेंडर बदले जाने को हैं जिनके दिन-रात ज़रूरी
रंग महज़ लगती है जिनको दुल्हन जैसी साँझ सिंदूरी

उनको ही तो मुस्कानों का सारा क़ारोबार फलेगा 
जिनकी आँखों के पानी का पीड़ा से उद्योग नहीं है 

हमने ख़ुद अपने आँचल पर काँटों को अधिकार दिया है
हमने पीड़ा से ही केवल पीड़ा का उपचार लिया है
प्रेम-कथा में अपने हिस्से आया हर क़िरदार जिया है
हम हर दुःख के अधिकारी हैं, आख़िर हमने प्यार किया है

हम दोनों के पास नयन हैं, हम दोनों ने सपनें देखें
हम दोनों ने प्रेम किया है, जग पर कुछ अभियोग नहीं है

©मनीषा शुक्ला



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