22 Jan 2021

रास्ते को हारकर रुकना पड़ा

आज पहली बार नीचा है गगन
आज पहली बार है झुकना पड़ा

आज से पहले कभी ऊँचाइयाँ
सिर उठाने पर नहीं थी कम पड़ी
देहरी ने की नहीं अवमानना
द्वार पर तोरण लिए हरपल खड़ी
आज तन सम्मान से दूना हुआ
इसलिए अभिमान से चुकना पड़ा

आज से पहले सदा परछाइयाँ
क़द बढ़ाती थीं क़दम को चूमकर
दिन चढ़े, सूरज ढले या रात हो
हो गई अब ज़िन्दगी इक दोपहर
ढूँढता कोई नहीं; इस खेल में
आज अपने-आप से लुकना पड़ा

आज से पहले कभी चलते हुए
बोझ लगते थे न अपने पाँव ख़ुद
आज से पहले न दीखा पेड़ वह
माँगता अपने लिए जो छाँव ख़ुद 
इस तरह भटके बटोही के चरण
रास्ते को हारकर रुकना पड़ा

मनीषा शुक्ला


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