28 Jan 2018

पातियां अधर पर

तुम न पढ़ पाओ, तुम्हारा दोष होगा
पातियां हमने अधर पर छोड़ दी हैं

मुस्कराहट में मिलाकर टीस थोड़ी छोड़ आए
जोड़ लेना तुम किसी दिन, हम स्वयं को तोड़ आए
हो सके तो उन सभी संबोधनों की लाज रखना
इंगितों की राह लेकर जो तुम्हारी ठौर आए
मौन के सत्कार से श्रृंगार देना
बोलियां हमने अधर पर छोड़ दी हैं

वर्ण माला ने दिए हैं शब्द हमको सब दिवंगत
एक राजा, एक रानी, इस कहानी में असंगत
हम अकथ ही रह गए इस बार भी, हर बार जैसे
रातरानी, रात को ही दे न पाई गंध-रंगत
किंतु तुमसे बात अब खुलकर करेंगी
चुप्पियां हमने अधर पर छोड़ दी हैं

एक अनबोली निशानी,जब कभी भी याद आए
कुछ तुम्हारा सा तुम्हीं में, गर हमारे बाद आए
जान लेना कुछ ग़लत है ज़िन्दगी के व्याकरण में
श्लोक में आनंद के यदि पीर का अनुवाद आए
मत सहेजो अब नई कटुता यहां पर
मिसरियां हमने अधर पर छोड़ दी हैं

© मनीषा शुक्ला

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