हार कर हमको गया जो, है उसे शुभकामनाएँ
प्रेम के हर इक समर में, वो अधूरी जीत पाए
होंठ पर कलियां खिलाए, पीर बस पोसे नयन में
चन्दनी बाँहें गहे फिर कसमसा जाए घुटन में
प्राण के बिन देह जैसा, बिन समर्पण प्रेम पाए
फूल को अंगिया लगाए तो चुभन पाए छुअन में
सौंप कर हमको गया जो, पीर की पावन कथाएँ
गीत हमको कर गया जो, वो हमेशा गीत गाए
रूठने वाला मिले ना, वो जिसे जाकर मनाए
मोल पानी का रही हैं, प्यास की सम्भावनाएँ
चाह कर भी कर न पाए प्रेम का सम्मान अब वो
देवता बिन लौट जाएं, अनछुई सब अर्चनाएँ
इक नदी जो मांगने इक बूंद सागर, द्वार आए
एक आंसू भी न बरसे, वो उसी दिन रीत जाए
एक पत्थर पूजने को, एक पत्थर ही मिलेगा
हां! उसे इक दिन हमारे नेह का वर भी फलेगा
रेत पर लगते नहीं हैं बाग हरसिंगार वाले
इक बसंती प्रार्थना से, कब तलक पतझर टलेगा ?
चांद को ख़ाली कटोरा, अश्रु को पानी बताए
शेष ये ही कामना है, वो, उसी-सा मीत पाए
© मनीषा शुक्ला
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