31 May 2018

जो लिखेंगे, आज उसको, सत्य होना ही पड़ेगा

कंठ में पीड़ा सजा के, वेदना को स्वर बना के
जो लिखेंगे, आज उसको, सत्य होना ही पड़ेगा

अक्षरों के हम नियंता, हम कलम के सारथी हैं
युद्ध का हम ही बिगुल हैं, मंदिरों की आरती हैं
हम धरा पर आज भी सत्यम-शिवम की अर्चना हैं
हम वही जुगनूं कि जिनको रजनियां स्वीकारती हैं
हम सदा इतिहास के हर घाव को भरते रहे हैं
हम अगर रोएं, समय को साथ रोना ही पड़ेगा

हम कथा रामायणों की, धर्म का आलोक हैं हम
जो सजी साकेत में उस उर्मिला का शोक हैं हम
दिनकरों की उर्वशी के मौन का संवाद हैं हम
हम प्रलय कामायनी का, मेघदूती श्लोक हैं हम
बांचते ही हम रहे हैं पीर औरों की हमेशा
पुण्य के वंशज हमीं हैं, पाप धोना ही पड़ेगा

हैं हमीं, मीरा कि पत्थर के लिए जो बावली हो
हम वही तुलसी कि जिसके प्राण में रत्नावली हो
हम कबीरा की फ़कीरी, मस्तियां रसखान की हम
सूर के नैना, कि जिनसे झांकती शब्दावली हो
भाव के अंकुर हमीं से गीत के बिरवे बनेंगे
आखरों को पंक्तियों में आज बोना ही पड़ेगा

© मनीषा शुक्ला

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