12 Oct 2019

न झुकती हैं, न मिलती हैं, तमाशा ख़ूब करती हैं

मुहब्बत के ठिकानों को, तलाशा ख़ूब करती हैं
ज़रा सी बात को नज़रें तराशा ख़ूब करती हैं
झलक भर देख कर तुमको, तरसती हैं निगाहें पर
न झुकती हैं, न मिलती हैं, तमाशा ख़ूब करती हैं

©मनीषा शुक्ला

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