3 Oct 2019

कथानक मर रहा है

हो सके तो लौट आओ, भावनाओं में ह्रदय बन;
प्रेम के कुछ गीत हैं, जिनमें कथानक मर रहा है।

अनलिखा है, अनपढ़ा है, अनकहा भी रह न जाए;
कल्पना बीमार हो जब कौन शब्दों को सजाए?
कौन स्याही में ज़रा-सा मन निचोड़े आज फिर से?
कौन काग़ज़ पर तुम्हारे नाम के मोती उगाए?
हर तरफ़ तम से घिरा है आस का दीपक अभागा;
कृष्णपक्षी चाँद जैसे सांस अंतिम भर रहा है।

क्या ज़रूरी है गगन को हर दफ़ा धरती बुलाए?
क्यों नदी ही बस समंदर को हमेशा गुनगुनाए?
फिर पुरानी है कहानी, एक प्यासा, इक कुँआ है;
प्रश्न भी फिर से वही है, कौन, किसके पास आए?
देहरी से ही न जाए लौटकर मधुमास के पल;
आँख में सावन सहेजे मौन पतझर डर रहा है।

तुम अगर आओ, महावर लाल हो-हो कर लजाए;
झाँक कर मेरे नयन में टूटता दरपन जुड़ाए;
मेघ अलकों को सँवारे, चाँदनी पग को पखारे;
ओस की पायल पिरोकर, रात पैरों में पिन्हाए;
याचना, अधिकार बनकर, प्रेम में व्याकुल समर्पण;
एक पत्थर से निरन्तर प्रार्थनाएँ कर रहा है।

©मनीषा शुक्ला

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