गन्ध रहे जब तक फूलों में,
जब तक भौरों में यौवन है;
प्यास बचे जब तक धरती में,
जब तक बादल में सावन है;
जब तक मन में पीर रहेगी,
और नयन में होगा पानी,
जब तक सांस न भूले सरगम,
और न भूले रक्त रवानी;
एक किसी का इंगित पाकर, सबकुछ वार दिया जाएगा;
तब तक प्यार किया जाएगा!
दीपों का आमंत्रण पाकर,
शलभों को अमरत्व मिलेगा;
पंचतत्व निर्मित काया में,
प्रेम छठा इक तत्व मिलेगा;
बादल की पूँजी है पानी,
प्यास किसी चातक का धन है;
तब तक यह अनुबन्ध रहेगा,
जब तक प्राणों में कम्पन है;
आँसू को पंचामृत कहकर, सब सत्कार किया जाएगा;
तब तक प्यार किया जाएगा!
प्रेम बिना कैसे रह पाए,
जो 'मन' लेकर जग में आए;
चाहे विषधर कण्ठ लगाए,
चन्दन, चन्दन ही कहलाए;
पूरी रात जलेगा फिर भी,
चाँद सुबह शबनम ही देगा;
प्रियतम दुःख देता हो, दे दे,
जितना देगा, कम ही देगा;
फूलों से काँटों की नीयत का उपचार किया जाएगा;
तब तक प्यार किया जाएगा!
देह अगर, छूकर बढ़ जाए,
प्रेम-समर्पण बन जाता है;
एक यही पाने को ईश्वर,
ख़ुद भी धरती पर आता है;
नारायण दुनिया की ख़ातिर,
राम, कभी घनश्याम रहेंगे;
तुलसी के चरणों में लेकिन,
केवल शालिग्राम रहेंगे;
जब तक भी ब्रम्हा की रचना में विस्तार किया जाएगा;
तब तक प्यार किया जाएगा!
©मनीषा शुक्ला
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