21 Apr 2020

सोशल मीडीया : महिलाऐं कितनी सुरक्षित ?

हाल ही में एक अलग लेकिन डरावने अनुभव से साक्षात्कार हुआ। मेरा ऑफिशियल पेज; जिस पर तकरीबन 17 हज़ार फ़ॉलोओवेर्स थे; उस पर स्पैम अटैक हुआ। अचानक उस पर अवांछित फ़ॉलोओवेर्स की संख्या बढ़ने लगी और उसके बाद दुनिया भर के भद्दे कमेंट्स, अश्लील टिप्पणियाँ! 
कुल मिला कर मामला मेरी सहनशक्ति से इतना बाहर हो चला कि मुझे वो पेज डिलीट करना पड़ा।
ख़ैर, वास्तविक संसार तो हमें स्वप्न में भी नहीं भूलने देता कि हम स्त्री हैं, पहली बार महसूस हुआ कि फेसबुक की इस आभासी (वर्चुअल) दुनिया में भी हम महिलाएं कितनी असुरक्षित हैं। एक ऐसी जगह जहां लाइक, कॉमेंट्स और शेयर से ज़्यादा हमारे आभासी व्यक्तित्व के साथ कोई कुछ नहीं कर सकता, वहां भी डर महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे ये अपशब्द जोंक की तरह शरीर से चिपक रहे हैं। बहुत लोगों ने समझाया कि फेसबुक के तमाम फीमेल पेजेस पर ये समस्या बहुत सामान्य बात है। यानि, अगर आप महिला हैं और पब्लिक फीगर हैं तो आपको इनके लिए तैयार रहना चाहिए। आप एक स्त्री होकर कुछ अलग करने चली हैं, आपको उसकी क़ीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे कोई परोक्षतः कह रहा हो-
"तुमने लक्ष्मण रेखा लाँघी है, इसलिए यहाँ घूमने वाले हर दशानन को ये अधिकार है कि तुम्हारा अपमान करे"।
मैं सोच रही हूँ कि फेसबुक पर एक सामान्य-सी कवयित्री का पेज देखकर अगर ये लोग अपने चरित्र से इतना गिर सकते हैं, तो क्या आश्चर्य है अगर ये फ़िल्मी अभिनेत्रियों को अपनी बपौती समझते हों? क्यों न माना जाए कि यदि 11 बजे रात को सड़क पर अकेली घूमती महिला इनके हाथ लग जाए तो वे उसके शरीर को नोच खाएंगे?
दरअस्ल ग़लती हमारी ही है। हमने अपने बेटों को सिखाया कि "माँ" देवी होती है। उसकी पूजा करो। वे मान गए। उन्होंने अपनी माँ को पूजा के लिए इस्तेमाल किया और दूसरों की माँ को गाली के लिए!
हमने उन्हें सिखाया कि तुम्हारी बहन की रक्षा तुम्हारा धर्म है। वे मान गए। उन्होंने अपनी बहनों की रक्षा की और दूसरों की बहनों का बलात्कार!
हमने उन्हें सीख दी कि तुम्हें अपनी पत्नी से प्रेम करना चाहिए। वे अपनी पत्नी से तो प्रेम करना सीख गए मग़र प्रेमिका के शरीर से आगे नहीं बढ़ पाए। 
दरअसल, हम अपने बच्चों को केवल एक 'स्त्री' का
सम्मान करना सिखाना भूल गए। हम उन्हें ये समझाने से चूक गए कि हर औरत, औरत होने से पहले एक मनुष्य है और हर मनुष्य को मनुष्य का सम्मान करना आना चाहिए। वह पुरुष के बराबर नहीं, पुरुष जैसी भी नहीं, परन्तु वह जैसी भी है, अपने हर रूप में सम्मान की अधिकारिणी है। 
अपने बेटों को इस भ्रम से बाहर निकालिए कि किसी स्त्री की सुरक्षा उनका कर्तव्य है, उनसे केवल इतना विश्वास माँगिए कि उनके पुरुषत्व से किसी भी स्त्री को कभी, कोई ख़तरा नहीं होगा। उनके पास से गुज़रती किसी भी महिला को कभी ये नहीं सोचना होगा कि उसका आँचल तो नहीं ढलका; उसकी पायल ज़्यादा तो नहीं छनक रही; ...और हाँ!
अपनी नैसर्गिक मुस्कान में वो डर की मिलावट करना तो नहीं भूल गई!

©मनीषा शुक्ला

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