26 Apr 2020

बिछड़ने का वादा करना

बिछड़ने का वादा करना,
इतना भी आसान नहीं था, जीवन भर मरना!

जैसे कोई नाव बिछड़कर लहरों से पछताए
नदिया को तो पार करे पर तट पर डूबी जाए
गीली लकड़ी सा कोई जैसे मन को सुलगाए
तेल बिना बाती पर जैसे अँधियारा मुस्काए
पागल होकर परछाईं को बाँहों में भरना!

अम्बर के सीने में जैसे कोई चाँद छिपाए
भीतर जेठ तपे, जीने पर सावन शोर मचाए
अंगारा कोई जैसे शबनम की माँग सजाए
निरवंशी सपना कोई आँखों से प्रीत लगाए
अनरोया आँसू पलकों की कोरों पर धरना!

जिस पानी में आग नहीं वो कैसे प्यास बुझाए
मेघ बिना बदली, प्रिय बिन, विधवा मधुमास कहाए
बिन प्राणों के साँस किसी का जीवन क्या महकाए
हर पूजन का भाग्य कहाँ जो मनचाहा वर पाए
लेकिन तुम बिन क्या पाना, क्या खोने से डरना!

©मनीषा शुक्ला

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