19 Jun 2020

RIP Sushant Singh Rajput (सुशांत सिंह राजपूत )




मेरे पिताजी एथलीट बनना चाहते थे, माँ गायिका बनना चाहती थी, भाई पायलट और मैं डांसर। आज पिताजी पत्रकार हैं, माँ गृहिणी, भाई और मैं दोनों इंजीनियर। और हाँ, हमसब जीवित हैं! तुम क्यों चले गए सुशांत! 
ये सवाल उन सब लोगों से भी है जो ज़िन्दगी जी तो रहे हैं, मग़र ज़िंदा नहीं हैं। ऐसे मरे हुए लोग सचमुच किस दिन मौत को गले लगा लें, कुछ नहीं कहा जा सकता।
मेरे पिताजी हमेशा कहते हैं - 
अगर ख़ुश रहना है तो हमेशा उन लोगों की ओर देखो, जो तुमसे भी अधिक वंचित हैं, फिर भी जी रहे हैं। और यदि आगे बढ़ना हो तो उनकी ओर देखना जो तुमसे भी अधिक विपरीत परिस्थितियों में तुमसे बेहतर कर रहे हैं । उनकी इसी बात ने मुझे मेरी हर छोटी-बड़ी उपलब्धि की इज़्ज़त करना सिखाया।
मैंने अपने जीवन में फिल्मों से भी बहुत कुछ सीखा। 'रंग दे बसंती' फ़िल्म में आमिर ख़ान का वो डायलॉग जिसमें वो कहते हैं- 
"कॉलेज के गेट के इस तरफ़ ज़िन्दगी को हम नचाते हैं, और उस तरफ़ ज़िन्दगी हमें नचाती है। कॉलेज के अंदर लोग कहते हैं डी जे में बड़ी बात है। कुछ करेगा डी जे। बाहर दुनिया में अच्छे-अच्छे डी जे पिस गए लाखों की भीड़ में। "
इस फ़िल्म के इस डायलॉग ने मुझे हमेशा इस भ्रम से दूर रखा कि मैं बहुत प्रतिभाशाली हूँ, इसलिए सफलता हर बार मेरे क़दम चूमेगी।
या 'ख़ामोशी' फ़िल्म में मनीषा कोईराला का वो डायलॉग-
"वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमें कोई नामुमकिन सपना न हो।"
इन शब्दों ने हमेशा मुझे यक़ीन दिलाया कि ज़िंदगी आसान बनाने में तो मज़ा है, पर आसान ज़िन्दगी जीने में नहीं।
या फिर 'उड़ता पंजाब' में आलिया भट्ट का वो डायलॉग-
"जब अच्छा वक़्त आएगा तो पूछेंगे उससे - कहाँ था रे? इंतज़ार कर रहा था हमारे टूटने का? देख हम टूटे नहीं हैं। खड़े हैं अपने पैरों पर।"
30 सेकेंड के इस डायलॉग ने मुझे के बताया कि ज़िन्दगी से सचमुच बदला लेने का इरादा है तो उसे उसे तब तक जियो जब तक वो ख़ुद न मर जाए।
और आख़िर में मेरा अपना फेवरिट डायलॉग-
"इतने बड़े सपनें क्यों देखे जाएँ कि उनके सामने ख़ुद को, ख़ुद का वजूद छोटा लगने लगे?"
कुलमिलाकर ये कहना चाहती हूँ कि AIEEE में 7th रैंक लाने वाला, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से मेकैनिकल इंजीनियरिंग करने वाला, झलक दिखला जा और नच बलिए का सबसे कंसिटेन्ट और बेहतरीन डांसर, एम. एस. धोनी के किरदार से लोगों को सुशांत सिंह राजपूत तक लाने वाला व्यक्ति अगर फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं भी हो पाता, तो उसकी महत्ता कम नहीं हो जाती। काश ये बात तुम समझ पाते दोस्त!

©मनीषा शुक्ला

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