26 Jun 2020

तुम गए जबसे

तुम गए जबसे, सुबह सूरज जलाना भूल बैठी
तुम गए तबसे, अंगीठी चाँद की ठंडी पड़ी है

तुम गए क्या, रात ने गेसू नहीं तबसे सँवारे
बिन तुम्हारे बोझ लगते हैं गगन को ये सितारे
तुम गए जबसे लहर ने होंठ अपने सी लिए हैं
तुम गए जबसे, नदी से दूर बैठे हैं किनारे

तुम गए जबसे, न कहती रात से कुछ रातरानी
तुम गए तबसे, बगीचे में हिना गूँगी खड़ी है

तुम गए तो खुशबुओं ने फूल से अनुबंध तोड़े
तितलियों ने रंग की कारीगरी के काम छोड़े
तुम गए जबसे, हवा ने पँख गिरवी रख दिए हैं
तुम गए, सब मंज़िलों ने रास्तों से हाथ जोड़े

तुम गए जबसे, न गाया गीत कोई भी हृदय से
तुम गए तबसे, अधर से बाँसुरी हरदिन लड़ी है

कर रहा मन ख़र्च कोई रोज़ तुमको याद करके
चुक गई है नींद सारी आँसुओं का ब्याज भरके
तुम गए हो, अब न तोड़ेंगी कभी उपवास आँखें
तुम गए, सब थम गया है, साँझ तक भी दिन न सरके

तुम गए जबसे, समय की देह नीली पड़ गई है
तुम गए तबसे, बहुत धीमी कलाई की घड़ी है

©मनीषा शुक्ला

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