15 Jun 2020

तुम्हारी यादों का सामान

तुम्हारी यादों का सामान
खिड़की को साँसे देता है, दीवारों को कान

हरजाई अख़बार कि जिससे घण्टों बतियाते हो
नासपिटी शतरंज, नहीं तुम जिससे उकताते हो
बैरी चश्मा पल भर को भी नैन न छोड़े ख़ाली
छूकर होंठ तुम्हारे आई चाय भरी ये प्याली
और तुम्हारी टेबल पर मुस्काता मीठा पान
तुम्हारी यादों का सामान

काट रही है बालकनी वनवास तुम्हारा दिन भर
गमले की चंपा की ख़ातिर सौत तुम्हारा दफ़्तर
अलग लगे दरवाज़े की घण्टी को छुअन तुम्हारी
और तुम्हारे बिन लगता है समय घड़ी को भारी
तुम लौटो तो आ जाती है घर में फिर से जान
तुम्हारी यादों का सामान

अधखुलती खिड़की से लिपटे पर्दे की उलझन में
तुम साँसों के चन्दन में, तुम नैनों के दरपन में
तुम तकिए की ख़ुश्बू में, तुम सिलवट में चादर की
तुम घर में, तुम में रहती है परछाईं इस घर की
नाम लिखी तख़्ती की भी है तुमसे ही पहचान
तुम्हारी यादों का सामान

©मनीषा शुक्ला

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