11 Jun 2020

तुम सँजो लो!

हर घड़ी जिसको लुटाती जा रही है भाग्यरेखा;
हो सके तो तुम सँजो लो!

जिस नयन में एक आँसू भी नहीं ठहरा ख़ुशी से
पढ़ रहे हैं होंठ जिसके, मंत्र तर्पण के अभी से
दान ऐसा; जो अखरता ही रहा बस याचना को
मौन ऐसा; कह न पाया बात अपनी जो किसी से

मर गया वह दुःख अभागा, आज भरकर आँख रो लो!
हो सके तो तुम सँजो लो!

एक सूरज के लिए जलता रहा आकाश सारा
और धरती माँगती ही रह गई कोई सितारा
बाँटनेवाला बहुत अनुदार अपनी भूमिका में
मिल गए दोनों जहाँ, पर दे न पाया वह किनारा

अब तुम्हीं बढ़कर ज़रा आकुल क्षितिज के पँख खोलो!
हो सके तो तुम सँजो लो!

अब समर्पित है तुम्हीं को, चाह लो या राह अपनी
धर्म ख़ुश्बू का बिखरना, कब उसे परवाह अपनी
तुम निठुर हो भी गए तो मन बनेगा आज बादल
ख़ूब बरसेंगे नयन जो सह न पाए दाह अपनी

आज इस गीले हृदय में प्रार्थना के बीज बो लो !
हो सके तो तुम सँजो लो!

©मनीषा शुक्ला

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