8 Sept 2020

थाली के बैंगन

सजन तुम रूप, तुम्हीं यौवन
झाँकू रोज़ नयन में, देखूँ मनचाहा दरपन

चूल्हे में संसार पड़े; मैं मोती रोज़ लुटाऊँ
दूध नहाऊँ, पूत फलूँ मैं, सौ सौभाग कमाऊँ
धरती के चक्कर में चंदा, धरती चाहे सूरज
एक हमारी जोड़ी ही सबको लगती है अचरज

राम मिलाए जोड़ी अपनी ज्यों पानी-चंदन

तुमको नजर न लागे बालम बैरी हुआ जमाना
सीता, चंपा, मधुबाला की बातों में मत आना
तुमको देख खुला करता है महलों का चौबारा
गोरा रंग हुआ जामुन सा, ऐसे कौन निहारा

रोज़ तुम्हें अब लगवाऊँगी काजल का उबटन

जो थाली पर माता है, जो मधुमासों में रम्भा
वक़्त पड़े तो बन जाती है वो भी चंडी-अम्बा
साथ तुम्हारे जीना-मरना दोनों कर सकती हूँ
लेकिन तुमको बिन मारे मैं कैसे मर सकती हूँ?

रहना मेरी ओर सदा ओ 'थाली के बैंगन' !

©मनीषा शुक्ला

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