13 Sept 2020

समझौता

कल नदी के तीर पर दो दीप देखे मुस्कुराते
एक पल में सौ जनम के साथ की कसमें उठाते

कल जिएंगे या मरेंगे; ये न जाने क्या करेंगे
जब प्रणय के देवता अंगार फूलों पर धरेंगे
रेत पर सतिया बनाकर, चूमते हैं भाग्यरेखा
ये भला शुभ-लाभ वाली अटकलों से क्या डरेंगे
हैं बहुत भोले, न कुछ भी जानते हैं ये अभागे
बीत जाएगी उमर सरसों हथेली पर उगाते

कल ज़माना रीतियों की दे रहा होगा दुहाई
प्रेम के इस रूप को कुल मान लेगा जग-हँसाई
नेह के व्यापार में सम्बन्ध की बोली लगेगी
जीत जाएगी अँगूठी, हार जाएगी सगाई
बेबसी की चीख पर भारी पड़ेंगे मंत्र के स्वर
शव उठेगा हर वचन का, धूम से, गाते-बजाते

एक कोना मन हमेशा एक-दूजे से छिपाकर
ज़िन्दगी पूरी जिएँगे, रोज़ आधा प्यार पाकर
एक-दूजे में तलाशेंगे हमेशा तीसरे को
एक-दूजे को मिलेंगे ये हमेशा और कमतर
फिर किसी दिन ज़िन्दगी से आँख मिलने पर कहेंगे
एक समझौता हुआ था, बस उसी को हैं निभाते

©मनीषा शुक्ला

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