12 Sept 2020

याद करते, भूल जाते


ऊब जाती है घड़ी ठहरा हुआ लम्हा बिताते
कट रहे हैं दिन किसी को याद करते, भूल जाते

फिर महक लेकर किसी की हैं सुबह ने केश धोए
रात भर रो कर गगन ने मोतियों के बीज बोए
फिर किसी तस्वीर के सब रंग फूलों में मिले हैं
उस हँसी में ही खनकती धूप ने आँचल भिगोए
रात का चंदा न जाने अब कहाँ, किस ठौर होगा
बीतता है दिन किसी के साथ सूरज को निभाते 

फिर हुआ भारी किसी को याद करके साँझ का मन
दौड़कर परछाइयों के साथ कुछ थक-सा गया तन
रौशनी को दे विदाई लौटता सूरज अभागा
पोंछता है आँख, पानी में नदी के देख दरपन
टूटते ज़िंदा सितारे, प्रेम में असहाय होकर
रौशनी के वास्ते हैं चांद को ईंधन बनाते

फिर हवाएँ छेड़ती हैं गंध डूबी रातरानी
होंठ पर फिर कसमसाई एक भूली-सी कहानी
फिर अंधेरा चांदनी की चाशनी में घुल रहा है
लाँघता है फिर नयन की देहरी दो बून्द पानी
याद आई ज़िन्दगी के छंद से ख़ारिज जवानी
फिर कटेगी रात पूरी गीत कोई गुनगुनाते 

©मनीषा शुक्ला

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